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बड़ी भूमिका चाहती हैं तो महिला सैनिकों को नहीं मिलेगी कोई विशेष सुविधा : सेना प्रमुख रावत

नयी दिल्ली : सेना प्रमुख बिपिन रावत ने आज कहा कि समान अवसर समान जिम्मेदारी लाता है और यह फैसला करना महिलाओं पर निर्भर है कि क्या वे किसी अलग या अतिरिक्त सुविधाओं के बगैर अग्रिम पंक्ति की लडाकू भूमिका में पुरुषों के साथ आने को तैयार हैं. उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि […]

नयी दिल्ली : सेना प्रमुख बिपिन रावत ने आज कहा कि समान अवसर समान जिम्मेदारी लाता है और यह फैसला करना महिलाओं पर निर्भर है कि क्या वे किसी अलग या अतिरिक्त सुविधाओं के बगैर अग्रिम पंक्ति की लडाकू भूमिका में पुरुषों के साथ आने को तैयार हैं.

उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि जब टैंक बाहर निकलते हैं तब पुरुषों को उसके नीचे ही रात में सोना पड़ता है और कोई अलग सुविधा नहीं होती. अग्रिम पंक्ति को छोड़ कर सेना की लडाकू शाखा में महिलाओं की मौजूदगी का जिक्र करते हुए जनरल रावत ने याद दिलाया कि जब वे लोग गश्त पर जाते हैं तब शौचालय की कोई सुविधा नहीं होती.
उन्होंने 31 दिसंबर को सेना प्रमुख का पदभार संभालने के बाद अपने प्रथम सालाना सम्मेलन को यहां संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आपको समाज को समग्र रूप में देखना होगा. मैंने कहा है कि यदि हम महिलाओं को लडाकू भूमिका में लाते हैं तो उन्हें अपने पुरुष समकक्षों की तरह ही समान जिम्मेदारी साझा करनी होगी क्योंकि समान अवसर से अवश्य ही समान जिम्मेदारी आनी चाहिए. इसका मतलब है कि उन्हें ठीक वही काम करना होगा. ‘ टैंकों में सैनिकों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनमें से प्रत्येक में तीन कर्मियों की एक ईकाई होती है और जब वे बाहर जाते हैं या युद्ध में होते हैं तो वे सिर्फ टैंक के नीचे ही सोते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘तीन लोगों के चालक दल के पास एक स्टोव (चूल्हा) होता है. वे खाना पकाते हैं और टैंक के नीचे सोते हैं.’ उन्होंने कहा कि इन लोगों को शौचालय की या रहने की कोई सुविधा नहीं दी जाती है. सेना प्रमुख ने एक और उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘इसलिए, यदि टैंक में कुल तीन लोग होंगे और उनमें यदि एक महिला या दो महिला और एक पुरुष होगा, फिर वे टैंक के नीचे सोना चाहें और यदि महिलाएं इसे स्वीकार करने को इच्छुक हों तो…’ उन्होंने कहा कि 20 से 25 दिनों की गश्त होतीहै और अरुणाचल प्रदेश की सीमा में यह सबसे लंबी 35 दिनों की होती है. उन्होंने बताया, ‘‘रात में, जब आप रुकते हैं तब एक नीला चादर डाला जाता है और हर कोई इसके नीचे एक साथ सोता है.’
उन्होंने कहा, ‘‘कोई शौचालय नहीं होता. हर कोई बोतल लेकर जाता है, भगवान ही जानें कहां जाते हैं और वे कुछ समय बाद लौटते हैं. यदि महिलाएं उस माहौल में बाहर जाने को इच्छुक हैं तो महिलाओं को फैसला करना होगा. जब महिलाएं इस तरह का फैसला कर लेंगी, हम इस मुद्दे का हल कर लेंगे.’ सेना प्रमुख ने कहा कि इसे नीचे धकेलने की बजाय समाज पर गौर करना चाहिए और सोचना चाहिए. महिलाओं को इंजीनियर और सिगनल कोर में शामिल किया जा रहा है, जबकि वे इंफैंटरी, बख्तरबंद कोर और मैकेनाइज्ड इंफैंटरी से बाहर रखा गया है.
वायुसेना महिलाओं को लडाकू भूमिका में पहले ही शामिल कर चुकी है लेकिन उन्हें सीमावर्ती ठिकानों पर तैनात करने की संभावना नहीं है. नौसेना ने महिलाओं को ऐसे सभी विमान उड़ाने की इजाजत दी हैं जो विमान वाहक पोत से संचालित नहीं होते हों. इसका यह कारण है कि विमान वाहक पोत पर फिलहाल अलग सुविधाएं नहीं हैं. हालांकि, भविष्य में जहाजों का डिजाइन इसे ध्यान में रख कर बनाया जा रहा है.

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