नयी दिल्ली : दिल्ली में तीन नगर निगमों में भाजपा के 135 पार्षदों में से तकरीबन आधे का आगामी नगर निकाय के चुनाव में टिकट कट सकता है क्योंकि पार्टी का निगम में सत्तारुढ पार्टी के खिलाफ मूड होने के प्रभावों को कम करने का लक्ष्य है.नगर निकाय चुनावों में भाजपा के लिए चिंता का विषय है कि उसके 50 फीसदी से अधिक पार्षद पिछले 10-15 साल से पद पर हैं. गौरतलब है कि दिल्ली में नगर निकाय के चुनाव अप्रैल में होने वाले हैं.
दिल्ली भाजपा के पदाधिकारियों ने बताया कि कई ऐसे पार्षद भी हैं जो चार बार से पार्षद हैं. ऐसे उम्मीदवारों पर सत्ता विरोधी लहर का सामना करने का सबसे अधिक जोखिम है.पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि दिल्ली के लोग आप सरकार के साथ लडाई की वजह से एमसीडी के समक्ष समस्याओं को समझते हैं, लेकिन वे पार्षदों के प्रदर्शन का भी मूल्यांकन करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘पार्टी ऐसे पार्षदों से छुटकारा पाना चाहती है और सौभाग्य से परिसीमन हमारे बचाव में आया है क्योंकि ऐसे कई पार्षदों के वार्ड में जबर्दस्त बदलाव आ गया है और उन्हें स्वत: नहीं उतारा जाएगा.’ परिसीमन से भाजपा को सबसे बडा फायदा यह है कि शहरी वार्ड जहां उसके ज्यादातर वर्तमान पार्षद हैं वे घट गये हैं.
पार्टी पदाधिकारी ने कहा, ‘लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा है लेकिन हो सकता है कि वे इन पार्षदों को नहीं पसंद करते हों, जो शहरी वार्ड से हैं.’ परिसीमन से पहले शहरी सीटों की संख्या तकरीबन 150 थी और शेष शहर के बाहरी और ग्रामीण हिस्से में थी. अब हालात बिल्कुल बदल गए हैं और ग्रामीण वार्डों और बाहरी क्षेत्रों की संख्या 150 तक हो गई है.
ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां भाजपा मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से नये उत्साह के साथ ध्यान केंद्रित कर रही है. तिवारी ने पिछले साल दिसंबर में दिल्ली भाजपा अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभाला था. उन्होंने नया साल टोडापुर में झुग्गीवासियों के साथ मनाया था.
चार अनधिकृत कालोनियों और झुग्गियों और नरेला और नजफगढ के कई गांवों में उनके रात में ठहरने से इन बस्तियों में खराब आधारभूत ढांचे का मुद्दा उजागर हुआ और पार्टी के नेताओं ने आप पर उन लोगों की अनदेखी करने के लिए हमला बोल दिया है, जिनके वोट से वह सत्ता में पहुंची.