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सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी: अमावस्या का इंतजार, फिर मौत बनकर आतंकियों पर टूटे भारतीय कमांडोज

नयी दिल्ली : बीते साल 29 सितंबर को लाइन ऑफ कंट्रोल के दूसरी ओर आतंकियों के लॉन्च पैड्स को भारतीय सेना ने तबाह कर दिया था लेकिन सबके मन में केवल एक ही सवाल आ रहा था कि इन वीर जवानों ने कैसे इस हमले को अंजाम दिया होगा. उन्होंने कितनी बहादूरी के साथ आतंकियों […]

नयी दिल्ली : बीते साल 29 सितंबर को लाइन ऑफ कंट्रोल के दूसरी ओर आतंकियों के लॉन्च पैड्स को भारतीय सेना ने तबाह कर दिया था लेकिन सबके मन में केवल एक ही सवाल आ रहा था कि इन वीर जवानों ने कैसे इस हमले को अंजाम दिया होगा. उन्होंने कितनी बहादूरी के साथ आतंकियों के छक्के छुड़ाये होंगे. इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने में पैरा कमांडोज और पैराट्रूपर्स से लैस टीम का अहम योगदान था जिन्हें इस वर्ष 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस को सम्मानित किया गया. कई अधिकारियों को मेडल्स से नवाजा गया है.

इस ऑपरेशन की प्लानिंग और उसे अंजाम तक पहुंचाने में बहुत सारे लोगों का हाथ है. हालांकि, जंग के मैदान में उतरकर दुश्मनों पर मौत बनकर बरसे इन कमांडोज को मेडल्स क्यों मिले, यह बताने के लिए सरकार ने इस ऑपरेशन के डिटेल्स साझा किये हैं जिसे आज अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रकाशित कियाहै.

अखबार ने जिस दस्तावेज के आधार पर खबर प्रकाशित की है उससे पता चलता है कि सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने में 19 पैरा कमांडोज का अहम योगदान है. दस्तावेज में इस ऑपरेशन को फील्ड में अंजाम देने की पूरी जानकारी उपलब्ध है. दस्तावेज के मुताबिक, पैरा रेजिमेंट के 4th और 9th बटैलियन के एक कर्नल, पांच मेजर, दो कैप्टन, एक सूबेदार, दो नायब सूबेदार, तीन हवलदार, एक लांस नायक और चार पैराट्रूपर्स ने सर्जिकल स्ट्राइक को अपने अंजाम तक पहुंचाने का काम किया.

4th पैरा के अफसर मेजर रोहित सूरी को कीर्ति चक्र और कमांडिंग ऑफिसर कर्नल हरप्रीत संधू को युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित गया है. इस टीम को चार शौर्य चक्र और 13 सेवा मेडल भी प्रदान किये गए हैं. कर्नल हरप्रीत संधू को लॉन्च पैड्स पर दो लगातार हमले करने का काम सुपूर्द किया गया था. हमले की योजना बनाने और उसके सफल क्रियान्यवन के लिए ही उन्हें युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित गया है.

जम्मू-कश्मीर के उड़ी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही भारतीय सेना ने बदला लेने की ठानी थी. सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर स्थित टेरर लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की योजना पर काम करना उड़ी हमले के बाद शुरू कर दिया था हालांकि, मिशन को अंजाम देने के लिए सेना को एक खास रात का इंतजार था जिसे हम अमावस्या की रात के नाम से जानते हैं. आखिरकार वह वक्त आया और 28 और 29 सितंबर की दरमियानी रात को मेजर रोहित सूरी की अगुआई में आठ कमांडोज की एक टीम आतंकियों के दांत खट्टे करने निकल पड़ी.

मेजर सूरी की टीम ने पहले इलाके की रेकी करने का काम किया. सूरी ने टीम को निर्देश दिया कि वे आतंकियों को उनके एक लॉन्चपैड पर खुले इलाके में चुनौती दें. सूरी और उनके साथी टार्गेट के 50 मीटर के दायरे के अंदर तक पहुंच गए और वहां दो आतंकियों को मार गिराया. इनको ठिकाने लगाते ही मेजर सूरी को पास के जंगली इलाके में हलचल होती नजर आयी. यहां दो संदिग्ध जिहादी अपने कार्यो में व्यस्त थे. उनके मूवमेंट पर एक यूएवी के माध्‍यम से भी नजर रखी जा रही थी. सूरी ने अपनी जरा भी परवाह नहीं की और दोनों आतंकियों को नजदीक से चुनौती दे डाली. अपने टारगेट को उन्होंने वहां फौरन निपटा लिया.

एक अन्य मेजर को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि इन लॉन्चपैड्स पर नजदीक से पैनी नजर बनाये रखे. यह अफसर अपनी टीम के साथ हमले के 48 घंटे पहले ही एलओसी पार कर गया और अपने कामों में लग गया था. इसके बाद से हमले तक इस टीम ने टार्गेट पर होने वाले हर मूवमेंट पर नजर गड़ाये रखा. उनकी टीम ने इलाके का नक्शा दिमाग के साथ-साथ कागजों पर भी तैयार कर लिया. दुश्मनों के ऑटोमैटिक हथियारों की तैनाती की जगह का आंकलन किया गया. उन जगहों की भी जानकारी जुटाई, जहां से हमारे जवान मिशन के दौरान सुरक्षित रहकर दुश्मन को निशाना बना सकें और ढेर कर सकें. इस अफसर ने एक हथियार रखने की जगह को तबाह कर दिया. इसमें दो आतंकी भी मारे गए थे.

हमले के दौरान यह अफसर और उनकी टीम नजदीक स्थित एक अन्य हथियार घर से हो रही फायरिंग की गिरफ्त में आ गए. अपनी टीम को खतरे में पाकर इस मेजर ने बड़ा साहसिक कदम उठाया. वह अकेले ही रेंगते हुए इस हथियार घर तक पहुंचा और फायरिंग कर रहे उस आतंकी को ढेर कर दिया. इस अफसर को बाद में शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

तीसरा मेजर अपने साथी के साथ एक आतंकी शेल्टर के नजदीक पहुंचा और उसे तबाह कर दिया. इस वजह से वहां सो रहे सभी जिहादियों की मौत हो गई. इसके बाद, उसने हमला करने वाली दूसरी टीमों के सदस्यों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने का काम किया. यह अफसर ऑपरेशन के दौरान आला अधिकारियों को ताजा घटनाक्रम के संबंध में लगातार जानकारी दे रहा था. इस मेजर को भी शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. चौथे मेजर को सेना मेडल दिया गया. उसने दुश्मनों के ऑटोमैटिक हथियार से लैस एक ठिकाने को बेहद नजदीक से एक ग्रेनेड हमले में तबाह करने का काम किया था जिसमें दो आतंकी मारे गए.

यह सर्जिकल स्ट्राइक जितना आसान दिख रहा है उतना आसान भी नहीं था. हमला करने वाली एक टीम आतंकियों की जोरदार गोलाबारी के बीच घिर गई. पांचवें मेजर को तीन आतंकी रॉकेट लॉन्चर्स के साथ नजर आए. ये आतंकी चौथे मेजर की अगुआई में ऑपरेशन को अंजाम दे रही टीम को निशाने पर लेने वाले थे. हालांकि, इससे पहले कि ये आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब होते, पांचवें मेजर ने अपनी जानक की परवाह न करते हुए इन आतंकियों पर हमला बोल दिया और दो को ढेर कर दिया, जबकि तीसरे आतंकी को उनके साथी ने मार गिराया.

इस मिशन में न केवल अफसरों, बल्कि जूनियर अफसरों और पैराट्रूपर्स ने भी अदम्य साहस का परिचय दिया. शौर्य चक्र से सम्मानित एक नायब सूबेदार ने आतंकियों के एक ठिकाने को ग्रेनेड बरसाकर तबाह करने का काम किया जिसमें दो आतंकी मारे गए. जब उसने एक आतंकी को अपनी टीम पर फायरिंग करते देखा तो उसने अपने साथी को सुरक्षित स्थान तक भी पहुंचाने का काम किया.

इस ऑपरेशन के दौरान किसी भी भारतीय जवान को नुकसान नहीं पहुंचा. हालांकि, निगरानी करने वाली टीम का एक पैराट्रूपर ऑपरेशन के दौरान घायल हुआ. उसने देखा कि दो आतंकी हमला करने वाली एक टीम की ओर बढ़ रहे हैं. पैराट्रूपर ने उनका पीछा किया, लेकिन गलती से उसका पांव एक माइन पर चला गया और जोरदार धमाका हुआ. इस धमाके में उसका दायां पंजा बुरी तरह जख्‍मी हुआ. चोटों की परवाह न करते हुए इस पैराट्रूपर ने आतंकियों से दो-दो हाथ किया और उनमें से एक को मार गिराया.

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