नयी दिल्ली : कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश सी एस करनन स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गई अवमानना कार्रवाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए. करनन और उनके अधिवक्ता के न्यायालय में पेश नहीं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कार्रवाई तीन हफ्ते के लिए टाल दी है. सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति करनन द्वारा शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार को लिखे गए पत्र को संज्ञान में लिया जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि दलित होने के कारण उनका उत्पीडन किया गया. सुप्रीम कोर्टने कहा कि उनके पेश नहीं होने के कारणों की हमें जानकारी नहीं है. इसलिए हम इस मामले में किसी भी कार्रवाई को टाल रहे हैं.
अवमानना नोटिस को करनन ने बताया दलित विरोधी
कलकत्ता हाइकोर्ट के जस्टिस सीएस करनन ने सुप्रीम कोर्ट अपने खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी अवमानना नोटिस को दलित विरोधी बताया है. अवमानना नोटिस को लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखा है और उसमें हाइकोर्ट के सिटिंग जस्टिस के खिलाफ इस कार्रवाई की की वैधानिकता पर सवाल उठाया है. जस्टिस करनन ने लिखा है कि यह कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं है. उन्होंने यह भी कहा है कि इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस के रिटायरमेंट के बाद होनी चाहिए और अगर इस पर सुनाई की बहुत जल्दी है, तो मामले को संसद भेज देना चाहिए. उन्होंने तब तक के लिए अपने न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार लौटाने की भी मांग की है. जस्टिस करनन ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएक खेहर की अगुआई वाले 7 जजों की बेंच पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने बेंच को दलित-विरोधी और सवर्णों की ओर झुकाव रखने वाला कहा है. जस्टिस करनन दलित समुदाय से आते हैं. उन्होंने कहा है कि ऊंची जाति के जज दलित वर्ग के जजों से मुक्ति चाहते हैं.
क्या है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस करनन को एक मामले में अवमानना का नोटिस जारी किया. जस्टिस करनन को 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने पेश होने को कहा गया था. उन्हें तत्काल न्यायिक और प्रशासनिक कार्य से अलग कर दिया गया है. भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह अपला अवसर है, जब हाइकोर्ट के सिटिंग जज को सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच ने अवमानना नोटिस जारी किया. पहली बार ऐसा है, जब हाइकोर्ट के सिटिंग जज को सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने अवमानना के मामले में पेश होने को कहा गया.