चंडीगढ़ : भारतीय सभ्यता और संस्कृति को लेकर वामपंथी और दक्षिणपंथी विचारधारा वाले इतिहासकारों का मुखर टकराव अब किताबों के पन्नों से बाहर निकलकर धरातल पर आ गया है. इसी का नतीजा है कि हरियाणा सरकार ने वर्षों पुरानी प्राचीन सभ्यताओं का नाम बदलकर दक्षिणपंथी विचारधारा के आधार पर रखना चाहती है. अभी इस साल की शुरुआत ही में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में आयोजित हरियाणा सरस्वती हेरिटेज डेवलपमेंट बोर्ड (एचएसएसडीबी) की बैठक में किये गये प्रस्तावों में सिंधु घाटी सभ्यता का नाम बदलने के प्रस्ताव को भी शामिल किया गया है, जिसे सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा जायेगा.
प्राचीन काल से ही विलुप्त और सूखी हुई सरस्वती नदी की खुदाई के बाद उसमें पानी छोड़ने के बाद अब एचएसएसडीबी ने सिंधु घाटी सभ्यता का नाम बदलकर सरस्वती नदी सभ्यता करने का फैसला किया है. उसका कहना है कि यह दी अब केवल कल्पित कथा ही नहीं है, बल्कि यह वास्तविक रूप में विराजमान है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में हुई बोर्ड की बैठक के बाद हरियाणा में सरस्वती महोत्सव का आयोजन किया गया. इसके साथ ही, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में सरस्वती नदी को लेकर दो दिवसीय सम्मेलन का भी आयोजन किया गया.
बोर्ड के प्रस्ताव में सरस्वती नदी को पौराणिक कथाओं से निकालकर धरातल पर लाया गया
सरकार के पास भेजे अपने प्रस्ताव में बोर्ड ने कहा है कि राज्य सरकार के ध्यान में लाते हुए यह बताना चाहेंगे कि अभी तक जिस सरस्वती नदी को कल्पित कथा के तौर पर देखा जाता था, वह वास्तविक रूप में विराजमान है. सरस्वती नदी की अवस्थिति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों द्वारा प्रमाणित किया गया है. इसलिए हमारे देश की सिंधु घाटी सभ्यता का नाम बदलकर जल्द ही सरस्वती नदी सभ्यता के रूप में किया जाना चाहिए. हरियाणा के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग की मुख्य सचिव सुमिता मिश्रा ने बताया कि बीते कई सालों में काफी मात्रा में हरियाणा में हड़प्पा संस्कृति के क्षेत्रों की खुदाई की गयी है. इसलिए अब सिंधु घाटी सभ्यता का नाम बदलकर सरस्वती-सिंधु सभ्यता किया जाना चाहिए.
नयी खुदाई में अवशेषों को सरस्वती नदी से जोड़ने का पूरा रखा जा रहा है ख्याल
देखा जाये, तो हरियाणा के राखीगढ़ी और प्राचीन भिड़ाना में ज्यादातर हड़प्पा संस्कृति से जुड़े अवशेष खुदाई के दौरान पाये गये हैं. राज्य सरकार ने फरीदाबाद जिले के कुनाल क्षेत्र में एक बार फिर अवशेषों की खुदाई की शुरुआत करायी है. खुदाई में जुटे अधिकारी इस बात का पूरा ख्याल रख रहे हैं कि इस खुदाई में मिले अवशेषों को सरस्वती नदी घाटी से कैसे जोड़ा जाये. एचएसएचडीबी के उपाध्यक्ष प्रशांत भारद्वाज का कहना है कि हमने कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में सिंधु घाटी सभ्यता का नाम बदलकर सरस्वती नदी सभ्यता रखने का प्रस्ताव पारित किया है. उन्होंने बताया कि भारत में सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े हुए करीब 1097 से अधिक क्षेत्र पाये गये हैं, जबकि पाकिस्तान में 70-80 क्षेत्र ही चिह्नित हो पाये हैं.
सरस्वती नदी का पौराणिक कथाओं का हिस्सा मानने वालों का किया जायेगा विरोध
बोर्ड के उपाध्यक्ष प्रशांत भारद्वाज का कहना है कि अब किसी को सरस्वती नदी को विलुप्त कल्पित नदी के तौर पर चर्चा नहीं करनी चाहिए, अब यह फिलहाल भौतिक रूप में विराजमान है. लोगों को अब इस नदी को पौराणिक कथाओं से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. यदि किसी ने इसे पौराणिक कथाओं के साथ जोड़कर चर्चा करता है, तो हम उसका विरोध करेंगे. यहां यह भी बता दें कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सरस्वती नदी के अस्तित्व को स्वीकारते हुए इस तथ्य को भी उजागर किया है कि हिमालय से निकलने वाली सरस्वती नदी गुजरात के रण क्षेत्र तक बहकर समुद्र में मिल जाती है. अब फिलहाल इस क्षेत्र में जितनी भी नयी खुदाई की जा रही है, उसमें इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि उसके अवशेषों को सिंधु के बजाय सरस्वती नदी से जोड़कर प्रस्तुत किया जाये.