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जिसके पास तिपहिया खरीदने के भी नहीं थे पैसे, वह नक्सलियों के साथ कर रहा था ये काम…!

नयी दिल्ली : भारत के खिलाफ युद्ध का षडयंत्र रखने के मामले में सजायाफ्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज के प्रोफसर जीएन साईंबाबा को अपने जीवन में एक समय में ऐसे दौर का भी सामना करना पड़ा था, जब शरीर के निचले हिस्से में लकवा के कारण 90 फीसदी विकलांगता के बावजूद तिपहिया रिक्शा […]

नयी दिल्ली : भारत के खिलाफ युद्ध का षडयंत्र रखने के मामले में सजायाफ्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज के प्रोफसर जीएन साईंबाबा को अपने जीवन में एक समय में ऐसे दौर का भी सामना करना पड़ा था, जब शरीर के निचले हिस्से में लकवा के कारण 90 फीसदी विकलांगता के बावजूद तिपहिया रिक्शा खरीदने तक के पैसे नहीं थे. यह उनकी खुशकिस्मती, लगन और मेहनत का ही परिणाम था कि उन्हें वर्ष 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय में बतौर प्राध्यापक नियुक्त कर लिया गया. देश के भविष्य को सुधारने के लिए उन्हें यह नौकरी मिली, अपनी करतूतों की वजह से उसकी गरिमा को वह बरकरार नहीं रख पाये. आज इसी का नतीजा है कि अदालत की ओर से उम्रकैद की सजा सुनाये जाने के बाद उनकी नौकरी पर बर्खास्तगी की तलवार लटक रही है और पूरा जीवन ही दावं पर लगा वह अलग से.

दरअसल, मंगलवार को गढ़चिरौली की एक विशेष अदालत ने माओवादियों से संपर्क रखने और देश के खिलाफ साजिश रचने में मामले में दिल्ली विश्विवद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा समेत पांच लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है. वहीं, छठे आरोपी को 10 साल की सजा दी गयी है. इस मामले में सजायाफ्ता लोगों में प्रोफसर साईंबाबा के अलावा जवाहर लाल नेहरूर विश्वविद्यालय के छात्र हेम मिश्रा, पूर्व पत्रकार प्रशांत राही, महेश तिर्की और पांडु नरोट शामिल हैं.

वहीं, 10 साल की सजा पाने वाला छठा आरोपी विजय तिर्की है. प्रोफेसर साईंबाबा को पुलिस ने 9 मई, 2014 को नक्सलियों को समर्थन देने के आरोप में गिरफ्तार किया था. विशेष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएस शिंदे ने सभी आरोपियों को विधि के विरुद्ध गतिविधियों में शामिल गैर-कानूनी गतिविधि (प्रीवेन्शन) कानून की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 का दोषी पाने के बाद यह सजा सुनाई है.

शरीर से तकरीबन 90 फीसदी विकलांग जीएन साईंबाबा लंबे समय से आदिवासियों और जनजातियों के बीच रहकर काम करते रहे हैं. वर्ष 2003 में दिल्ली आने के पहले उनके पास तिपहिया रिक्शा खरीदने के भी पैसे नहीं थे, लेकिन पढ़ाई में तेजी की वजह से साईंबाबा को दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर नौकरी मिल गयी. 9 मई, 2014 में गिरफ्तार होने के पहले साईंबाबा अखिल भारतीय पीपुल्स रेजिस्टंस फोरम (एआईपीआरएफ) के एक कार्यकर्ता के रूप में कश्मीर और देश के उत्तर-पूर्व हिस्से में मुक्ति आंदोलनों के समर्थन में दलित और आदिवासी अधिकारों के लिए प्रचार करने के लिए करीब दो लाख किमी से अधिक की यात्रा कर चुके हैं.

नौ मई, 2014 को गिरफ्तारी के बाद उन्हें नागपुर की अंडा जेल में 14 महीने तक रखा गया और केंद्र सरकार की ओर से उनकी बिगड़ती सेहत पर गौर किये जाने के बाद जुलाई, 2015 में उन्हें जमानत दी गयी. हालांकि, जमानत रद्द करते हुए पिछले साल दिसंबर में उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया था. साईंबाबा पर शहर में रहकर माओवादियों के लिए काम करने का भी आरोप है. क्रांतिकारी डेमोक्रेटिक फ्रंट माओवादियों का गुट है. इन पर इस गुट के सदस्य होने का आरोप था. सितंबर, 2009 में कांग्रेस सरकार के शुरू किये गये ऑपरेशन ग्रीन हंट में पकड़े गये थे. उस समय केंद्र सरकार की ओर से माओवादियों पर काबू पाने के लिए ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत की गयी थी.

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