अजमेर दरगाह धमाका मामला : विशेष अदालत का फैसला असीमानंद निर्दोष, 3 दोषी
जयपुर : 2007 में अजमेर दरगाह विस्फोट के मामले में स्वामी असीमानंद को विशेष अदालत ने आज बरी कर दिया. तीन अन्य लोगों को दोषी करार दिया गया है. स्वामी असीमानंद को अजमेर में हुए धमाके के बाद गिरफ्तार किया गया था. इन पर इस हमले की साजिश रचने का आरोप था. 11 अक्टूबर 2007 […]
जयपुर : 2007 में अजमेर दरगाह विस्फोट के मामले में स्वामी असीमानंद को विशेष अदालत ने आज बरी कर दिया. तीन अन्य लोगों को दोषी करार दिया गया है. स्वामी असीमानंद को अजमेर में हुए धमाके के बाद गिरफ्तार किया गया था. इन पर इस हमले की साजिश रचने का आरोप था. 11 अक्टूबर 2007 को हुए इस धमाके में तीन लोगों की मौत हो गयी थी जबकि 20 लोग घायल हो गये थे.
असीमानंद पर सिर्फ अजमेर धमाका का आरोप नहीं है इन पर हैदराबाद मक्का मस्जिद में धमाका, समझौता एक्सप्रेस धमाका में भी नाम शामिल है. 2010 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. शुरूआत में इन धमाकों में इन्होंने अपनी भूमिका स्वीकार कर ली थी लेकिन बाद में उन्होंने पुलिस पर दवाब देकर बयान लेने का आरोप लगाया था.
विशेष अदालत (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश दिनेश गुप्ता अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में आहता-ए-नूर पेड के पास 11 अक्टूबर, 2007 को हुए बम विस्फोट मामले का फैसला सुनाया. बचाव पक्ष के वकील जगदीश एस राणा ने कहा कि न्यायिक हिरासत में बंद आठ आरोपी स्वामी असीमानंद, हर्षद सोलंकी, मुकेश वासाणी, लोकेश शर्मा, भावेश पटेल, मेहुल कुमार ,भरत भाई, देवेंद्र गुप्ता फैसला सुनने के लिए अदालत में मौजूद थे.
ध्यान रहे कि विशेष अदालत ने 6 फरवरी को मामले की अंतिम बहस सुनने के तुरंत फैसला सुनाने का फैसला टाल दिया था. आज इस मामले में अहम फैसला आया है. 11 अक्टूबर, 2007 को दरगाह परिसर में हुए बम विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गयी थी. विस्फोट के बाद पुलिस को तलाशी के दौरान एक लावारिस बैग मिला था, जिसमें टाइमर डिवाइस लगा जिंदा बम रखा हुआ था.
इस मामले में एनआईए ने 13 आरोपियों के खिलाफ चालान पेश किया था. इनमें से आठ आरोपी वर्ष 2010 से न्यायिक हिरासत में बंद हैं. एक आरोपी चंद्रशेखर लेवे जमानत पर है. एक आरोपी सुनील जोशी की हत्या हो चुकी है और तीन आरोपी संदीप डांगे, रामजी कलसांगरा और सुरेश नायर फरार चल रहे हैं.
इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 149 गवाहों के बयान दर्ज करवाये गये, लेकिन अदालत में गवाही के दौरान कई गवाह अपने बयान से मुकर गये. राज्य सरकार ने मई 2010 में मामले की जांच राजस्थान पुलिस की एटीएस शाखा को सौंपी थी. बाद में एक अप्रैल, 2011 को भारत सरकार ने मामले की जांच एनआईए को सौप दी थी.