Loading election data...

बिहार की हार से भाजपा ने लिया सबक: मोदी और शाह ने सोशल इंजीनियरिंग के बल पर उत्तर प्रदेश को फतह किया

!!अंजनी कुमार सिंह!! नयी दिल्ली : यूपी और उत्तराखंड में मिली भाजपा की ऐतिहासिक सफलता राम मंदिर आंदोलन के दौरान भी नहीं मिली थी. तब माना गया था कि ऐसी सफलता वोटों के ध्रुवीकरण के कारण हुआ है. लेकिन इस बार की सफलता कुछ अलग है. क्योंकि इस जीत के पीछे प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 12, 2017 7:32 AM

!!अंजनी कुमार सिंह!!

नयी दिल्ली : यूपी और उत्तराखंड में मिली भाजपा की ऐतिहासिक सफलता राम मंदिर आंदोलन के दौरान भी नहीं मिली थी. तब माना गया था कि ऐसी सफलता वोटों के ध्रुवीकरण के कारण हुआ है. लेकिन इस बार की सफलता कुछ अलग है. क्योंकि इस जीत के पीछे प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की बड़ी भूमिका रही है. उसी के तहत वर्ष 2014 के आम चुनाव में मिली सफलता को दोहराने के लिए संगठन स्तर पर काफी बदलाव किया गया.

बिहार चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए जीताऊ उम्मीदवार को तरजीह दी गयी, स्थानीय नेताओं को महत्व दिया गया साथ ही सामाजिक संरचना को पूरी तरह से साधा गया. जिस वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा था, उन वर्गों को भी पार्टी ने अपने साथ जोड़कर उन्हें सम्मान दिया. इसी का नतीजा रहा कि यूपी में पार्टी ने प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की है. पार्टी ने खास रणनीति के तहत सीएम कंडीडेट पेश नहीं किया. पार्टी ने गैर यादव और गैर जाटव जातियों पर विशेष फोकस किया. गैर यादव 40 फीसदी अन्य पिछड़े वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए पिछड़े समाज से आनेवाले केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. चर्चा को बल मिला कि मुख्यमंत्री अगड़ा होगा. गैर यादव और गैर जाटवों को यह साथ लेने में भाजपा कामयाब रही.

जानें कुछ खास

1. यूपी से सांसद प्रधानमंत्री अपना प्रभाव कायम रखने में कामयाब रहें. उन्होंने स्टार प्रचारक के तौर पर धुआंधार प्रचार किया. उन्होंने वाराणसी में तीन दिन तक रूक कर प्रचार कमान संभाला.

2. भाजपा ने इस चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूला अपनाया. पिछड़ों और अति पिछड़ों को संगठन और टिकट बंटवारे में स्थान दिया. इसके साथ ही अपना दल और भारतीय समाजपार्टी के साथ गंठबंधन भी किया.

3. समाजवादी पार्टी अपने कलह के कारण पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गयी. मुलायम सिंह यादव की उपेक्षा पुराने सपा कैडर को रास नहीं आया.

4. मायावती का वोट बैंक भी खिसका. उन्होंने दलित और ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की लेकिन वह साथ नही ंआ सके.

5. भाजपा ने प्रदेश में कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाया. मंत्री गायत्री प्रजापति पर चुनाव के समय रेप केस दर्ज होना और वारंट जारी होना भी अखिलेश की मिस्टर क्लीन की छवि को बिगाड़ा.

Next Article

Exit mobile version