दोबारा कुरान लिखने जैसा होगा तीन तलाक को अवैध ठहराना : मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

नयी दिल्‍ली : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं क्योंकि ये मुद्दे न्यायपालिका के दायरे में नहीं आते हैं. बोर्ड ने कहा कि इस्लामी कानून, जिसकी बुनियाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2017 10:08 PM

नयी दिल्‍ली : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं क्योंकि ये मुद्दे न्यायपालिका के दायरे में नहीं आते हैं.

बोर्ड ने कहा कि इस्लामी कानून, जिसकी बुनियाद अनिवार्य तौर पर पवित्र कुरान एवं उस पर आधारित सूत्रों पर पड़ी है, की वैधता संविधान के खास प्रावधानों पर परखी नहीं जा सकती है. इनकी संवैधानिक व्याख्या जबतक अपरिहार्य न हो जाए, तबतक उसकी दिशा में आगे बढने से न्यायिक संयम बरतने की जरुरत है. बोर्ड ने कहा, तीन तलाक को न मानना कुरान को दोबारा लिखने जैसा होगा.

उसने कहा कि याचिकाओं में उठाये गये मुद्दे विधायी दायरे में आते हैं, और चूंकि तलाक निजी प्रकृति का मुद्दा है अतएव उसे मौलिक अधिकारों के तहत लाकर लागू नहीं किया जा सकता. बोर्ड ने दावा किया कि याचिकाएं गलत समझ के चलते दायर की गयी हैं और यह चुनौती मुस्लिम पर्सनल कानून की गलत समझ पर आधारित है, संविधान हर धार्मिक वर्ग को धर्म के मामलों में अपनी चीजें खुद संभालने की इजाजत देता है.

एआईएमपीएलबी ने शीर्ष अदालत में अपने लिखित हलफनामे में कहा, ‘शुरू में यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं क्‍योंकि याचिकाकर्ता निजी पक्षों के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग करते हैं. यह भी स्पष्ट किया जाता है कि 14,15 और 21 अनुच्छेदों के तहत गारंटित संरक्षण की उपलब्धता की मंशा विधायिका और कार्यपालिका के विरुद्ध है न कि निजी व्यक्तियों के विरुद्ध है.’

उसने कहा, ‘यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता न्यायिक आदेश की मांग करहे हैं जो बिल्कुल अनुच्छेद 32 के दायरे के बाहर है. निजी अधिकारों को संविधान के अनुच्छेद 32 (1) के तहत व्यक्तिगत नागरिकों के विरुद्ध लागू नहीं किया जा सकता है.’

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