नयी दिल्ली : अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मूल की अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने भारत में महिलाओं के प्रति होने वाले भेद-भाव को लेकर यह बयान दिया था कि भारत में उनकी मां को सिर्फ महिला होने के नाते हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर आसीन नहीं होने दिया गया था, क्योंकि उस समय देश की न्यायिक व्यवस्था में पुरुषों का वर्चस्व स्थापित था. उनके इस बयान विपरीत भारत ने करारा जवाब दिया है. अभी तक देश में कानून की ऊंचे ओहदों पर भले ही पुरुषों का आधिपत्य रहा हो, लेकिन वर्तमान समय में इस क्षेत्र में महिलाएं अपना कमाल दिखा रही हैं. आलम यह कि इस समय देश के चार हाई कोर्ट्स दिल्ली, कलकत्ता, बंबई और मद्रास के मुख्य न्यायाधीश के पद पर बैठकर फैसला सुना रही हैं.
मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, मद्रास हाईकोर्ट में नया इतिहास बनाते हुए 31 मार्च, 2017 को जस्टिस इंदिरा बनर्जी मद्रास हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त की गयी थीं. इसके साथ ही, यहां महिला जजों की तादाद बढ़कर छह हो गयी. यहां कुल 53 पुरुष न्यायाधीश हैं.
बंबई हाईकोर्ट : इसके साथ ही, बंबई हाईकोर्ट में देश के सभी उच्च न्यायालयों से ज्यादा महिला जज हैं. पिछले साल 22 अगस्त, 2016 से मंजुला चेल्लूर यहां की मुख्य न्यायाधीश हैं. उनके बाद नंबर दो पर भी महिला जस्टिस वीएम ताहिलरामनी हैं. बंबई हाईकोर्ट में कुल 11 महिला जज हैं. यहां पुरुष जजों की संख्या 61 है.
दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली के हाईकोर्ट के शीर्ष पर भी एक महिला हैं. यहां जस्टिस जी रोहिणी अप्रैल, 2014 से मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन हैं. दिल्ली हाईकोर्ट में कुल 9 महिला और 35 पुरुष न्यायाधीश हैं. नंबर दो पर जस्टिस गीता मित्तल हैं.
कलकत्ता : निशिता निर्मल म्हात्रे पिछले साल 1 दिसंबर से कलकत्ता हाईकोर्ट की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश हैं. हालांकि, यहां महिला और पुरुष जजों का अनुपात बाकी उच्च न्यायालयों के मुकाबले कम है. कलकत्ता हाईकोर्ट में 4 महिला जजों के मुकाबले 35 पुरुष न्यायाधीश हैं. देश के कुल 24 उच्च न्यायालयों में 632 जज हैं. इनमें से सिर्फ 68 यानी करीब 10.7 फीसदी महिलाएं हैं. सुप्रीम कोर्ट के 28 न्यायाधीशों में सिर्फ आर भानुमति ही महिला हैं.