आम चुनाव में अर्धशहरी मतदाताओं पर राजनीतिक दलों की निगाह
नयी दिल्ली : शहरीकरण के विस्तार के साथ देश का एक बड़ा हिस्सा अर्धशहरी क्षेत्र में तब्दील हो गया है. विश्लेषकों एवं राजनीतिक दलों ने ऐसे ग्रामीण एवं शहरी छाप लिये मतदाताओं की बड़ी संख्या को आगामी चुनाव में निर्णायक माना है.राजनीतिक दल इस वर्ग को अपनी रणनीति में महत्व दे रहे हैं. पूर्व केंद्रीय […]
नयी दिल्ली : शहरीकरण के विस्तार के साथ देश का एक बड़ा हिस्सा अर्धशहरी क्षेत्र में तब्दील हो गया है. विश्लेषकों एवं राजनीतिक दलों ने ऐसे ग्रामीण एवं शहरी छाप लिये मतदाताओं की बड़ी संख्या को आगामी चुनाव में निर्णायक माना है.राजनीतिक दल इस वर्ग को अपनी रणनीति में महत्व दे रहे हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह ने कहा, ‘‘ भारत में चुनावी प्रक्रिया सन 1952 से चली आ रही है. हर पांच साल पर चुनाव होते हैं और लोगों को अपना मत व्यक्त करने का मौका मिलता है. समय के साथ चुनावी परिदृश्य बदला है और अब शहर एवं गांव के बीच मतदाताओं का ऐसा वर्ग उभरा है जो न तो पूर्ण रुप से गांव से जुड़ा है और न ही पूरी तरह से शहर से.’’उन्होंने कहा कि ग्रामीण एवं शहरी छाप लिये इन मतदाताओं की बड़ी संख्या इस लोकसभा चुनाव में निर्णायक रहेगी.
विश्लेषकों का मानना है कि यह नई श्रेणी बेहद शक्तिशाली है जो न सिर्फ बाजार और अर्थव्यवस्था की दिशा तय कर रही है बल्कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कई दलों की तकदीर को बना बिगाड़ सकती है. भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि अर्धशहरी क्षेत्र विकास की धारा में ‘नो मैंस लैंड’ की तरह है जहां रहने वाले लोग न तो शहरों के होते हैं और न ही गांव के. इस अर्धशहरी क्षेत्र के मतदाताओं की बड़ी संख्या चुनाव में महत्वपूर्ण होगी.उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. व्यवहारिक तौर पर इस क्षेत्र के लोग शहरों के होते हैं जबकि सैद्धांतिक रुप से ये गांव से होते हैं. इस क्षेत्र के लोगों की समस्याओं पर सरकार एवं योजना आयोग के स्तर पर ध्यान दिये जाने की जरुरत है.
राजद सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि योजनाओं में गांव को दरकिनार किया जा रहा है, इसके फलस्वरुप लोगों का गांव से पलायन हो रहा है. शहरों में स्थान की कमी के कारण इसका विस्तार हो रहा है. कई कस्बों ने छोटे शहरों का रुप ले लिया है, कई स्थानों पर ऐसे कस्बों को शहर का दर्जा भी मिला है लेकिन इन छोटे शहरों में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. उन्होंने कहा कि आगामी चुनाव में ऐसे अर्धशहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और इस क्षेत्र के मतदाताओं की चुनाव परिणाम पर महत्वपूर्ण असर रहेगा. इन क्षेत्रों की समस्याएं चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं. चुनावी समर में नई उतरी पार्टी ‘आप’ ने भी इस वर्ग को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति तैयार की है. इन अर्धशहरी क्षेत्रों में आप ने सदस्यता अभियान चलाया है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, देश की 2001 की जनगणना के अनुसार करीब 5000 शहर थे. इनमें से 1200 शहरों का चरित्र अर्धशहरी था. एक दशक बाद 2011 में ऐसे शहरों की संख्या 8000 हो गई जिनमें करीब आधे अर्धशहरी चरित्र के थे. लोकसभा चुनाव के लिहाज से करीब 125 सीटें ऐसी मानी जा रही हैं जिनका चरित्र अर्ध शहरी है. देश की 1.21 अरब जनसंख्या में 83.3 करोड़ लोग गांव में रहते हैं और 37.7 करोड़ लोग शहरों में रहते हैं.