जयराम रमेश की किताब में खुलासा, प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा ने ‘साइलेंट वैली” को बचाया था
कोच्चि : एक नयी किताब में कहा गया है कि केरल की ‘साइलेंट वैली’ में एक विशाल पनबिजली परियोजना शुरू करने के कांग्रेस के रुख की अनदेखी करते हुए इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के तौर पर दुनिया के विख्यात वर्षा वनों में से एक को बचाया था. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की किताब […]
कोच्चि : एक नयी किताब में कहा गया है कि केरल की ‘साइलेंट वैली’ में एक विशाल पनबिजली परियोजना शुरू करने के कांग्रेस के रुख की अनदेखी करते हुए इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के तौर पर दुनिया के विख्यात वर्षा वनों में से एक को बचाया था. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की किताब ‘इंदिरा गांधी : ए लाइफ इन नेचर’ में कहा गया है कि केरल में कांग्रेस और माकपा दोनों ही ‘साइलेंट वैली’ से गुजरने वाली कुंतिपुझा नदी पर एक पनबिजली परियोजना बनाने के पक्ष में थे.
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पश्चिमी घाट के ऊंचे पहाड़ों में स्थित ‘साइलेंट वैली’ में भारत के सबसे लुप्तप्राय स्तनपायी प्राणियों में से एक माने जाने वाले लंगूर (वांडरु) रहते हैं. केरल के चार दशक पुराने ‘साइलेंट वैली’ आंदोलन का जिक्र करते हुए किताब में लिखा गया है कि कांग्रेस के प्रभावशाली नेता के. करुणाकरन और पार्टी के स्थानीय सांसद वी एस विजयराघवन केरल राज्य विद्युत बोर्ड (केएसईबी) की ओर से प्रस्तावित परियोजना के समर्थन में थे.
जयराम रमेश की इस किताब का विमोचन 10 जून को होने वाला है. किताब के मुताबिक, ‘इंदिरा गांधी ने इस पर चर्चा करने और वाद-विवाद करने में लगभग तीन वर्ष का समय लिया और अक्तूबर 1983 में इस परियोजना के खिलाफ फैसला किया.’ पालक्कड जिले में पनबिजली परियोजना के समर्थकों ने दलील दी थी कि यदि परियोजना को हरी झंडी नहीं दिखाई गई तो केरल के मालाबार क्षेत्र के विकास पर असर पड़ेगा.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री रह चुके जयराम रमेश ने बताया कि भारत के पर्यावरण इतिहास में ‘साइलेंट वैली आंदोलन’ ‘चिपको आंदोलन’ के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन रहा है. रमेश ने कहा कि यह काफी मुश्किल लड़ाई थी क्योंकि सारे ताकतवर नेता एक तरफ थे और सभी ऐसे पर्यावरणविद एवं कार्यकर्ता एक तरफ थे जो किसी राजनीतिक प्रभाव में नहीं थे.
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पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इंदिरा गांधी ने केरल के मुख्यमंत्रियों – माकपा के नेता ई के नयनार और कांग्रेस के नेता करुणाकरन – को पत्र लिखकर ‘साइलेंट वैली’ पर उन्हें अपने कड़े रुख से अवगत कराया. रमेश ने कहा कि इंदिरा गांधी के अप्रकाशित पत्रों, नोटों, संदेशों और मेमो का अध्ययन करने के बाद यह किताब लिखी गई.