नयी दिल्ली : जम्मू-कश्मीर में तथाकथित तौर पर पत्थरबाजों के हमले से बचने के लिए सुरक्षा बलों की ओर से एक आदमी को मानव ढाल के रूप में जीप पर बांधने के फैसला मामले में सरकार सैन्य अधिकारी का साथ देने का मन बनाया है. सरकार ने नौ अप्रैल की इस घटना पर सेना की जांच रिपोर्ट के बाद यह फैसला किया है. सरकार को सौंपी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारी ने पथराव के बाद आयी मुसीबत से बचने और जवानों तथा अधिकारियों की सुरक्षा में अनिच्छा से ऐसा कदम उठाया था. इस यूनिट में करीब एक दर्जन राज्य सरकार कर्मचारी थे. इसके अलावा आईटीबीपी के नौ-दस जवान, जम्मू-कश्मीर पुलिस के दो जवान और एक बस चालक शामिल था. जिस रास्ते से इस काफिले को गुजरना था, वहां पत्थरबाजों की भीड़ जमा थी और वे छतों पर खड़े थे.
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रक्षा मंत्री अरुण जेटली सोमवार को सेना कमांडरों की बैठक में इस मुद्दे पर बात कर सकते हैं. सरकार ने अधिकारी के इस कदम की तारीफ की है. सरकार इस विवादित फैसले को असाधारण परिस्थिति में उठाया हुआ कदम बता रही है, जिसमें यूनिट हेड को मुश्किल फैसला करना पड़ा. सेना के एक कमांडिंग ऑफिसर ने जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों, अर्द्धसैनिक बलों के जवानों और सेना की यूनिट की सुरक्षा के लिए भीड़भाड़ वाले इलाके से गुजरने के दौरान एक व्यक्ति को जीप के आगे बंधवा दिया था, ताकि गाड़ियों के काफिले को पत्थरबाजी और बिना किसी फायरिंग के गुजारा जा सके. जीप पर बांधे गये शख्श फारूक अहमद डार (26) को सेना कथित पत्थरबाज बता रही है. हालांकि, डार ने खुद को शॉल बुनकर बताया है.
पीएमओ में राज्यमंत्री उधमपुर से सांसद जितेंद्र सिंह ने मीडिया को बताया कि सरकार का मानना है कि सेना को राजनीतिक निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने घाटी में कश्मीरी नेताओं को आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि ये लोग नैतिकता की बलि चढ़ा चुके हैं. आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले अपराधियों की आलोचना करने के बजाय ये नेता सेना के जवानों को सॉफ्ट टारगेट बना रहे हैं. सेना ने कहा कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को रोकना मुश्किल था, क्योंकि यूनिट को सैकड़ों प्रदर्शनकारी घेरे हुए थे और वे हिंसा पर उतारू थे. स्थिति बिगड़ने पर उस व्यक्ति को गाड़ी के आगे बांध दिया गया.