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थियेटर क्रिटिक मंजरी ने कहा सफलता का नहीं है कोई शार्टकट

मंजरी श्रीवास्तव एक शानदार कवियित्री, पत्रकार और थियेटर क्रिटिक हैं. दिल्ली में इन्होंने अपना एक नाम बनाया है. मूलत: बिहार की मंजरी का संबंध झारखंड से भी अटूट है. इनका जन्म झारखंड के धनबाद में हुआ है. इन्होंने अपने कैरियर में जो मुकाम हासिल किया, वो एक मिसाल हैं. इन्होंने प्रभातखबर डॉटकॉम के साथ विस्तृत […]

मंजरी श्रीवास्तव एक शानदार कवियित्री, पत्रकार और थियेटर क्रिटिक हैं. दिल्ली में इन्होंने अपना एक नाम बनाया है. मूलत: बिहार की मंजरी का संबंध झारखंड से भी अटूट है. इनका जन्म झारखंड के धनबाद में हुआ है. इन्होंने अपने कैरियर में जो मुकाम हासिल किया, वो एक मिसाल हैं. इन्होंने प्रभातखबर डॉटकॉम के साथ विस्तृत बातचीत की.

कविता और थिएटर मेरा पैशन

मंजरी कहतीं हैं कविता और थिएटर मेरा पैशन है, नशा है, पागलपन है. मेरी संजीवनी बूटी भी यही दोनों हैं और पत्रकारिता प्रोफ़ेशन. मैंने कुछ नहीं किया बस दोनों को ब्लेंड कर दिया. पत्रकारिता में भी आर्ट एंड कल्चर बीट चुना, उसमें भी थिएटर क्रिटिसिज्म. इसलिए मेरे लिए तीनों को मैनेज करना आसान हो गया. मंजरी ने बताया कि मैं बिहारी हूं और तब की झारखंडी हूं जब झारखंड शब्द किसी के ज़ेहन में आया भी नहीं होगा. मेरा जन्म धनबाद में हुआ है हालांकि मुझे शिक्षा बिहार में मिली. मैंने एमए और पत्रकारिता की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की. पिछले 12-14 साल से दिल्ली में हूं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मैं पैदाइशी यायावर हूं. जहां तक अपने बारे में बताने की बात है तो महादेवी जी के शब्दों में कहूंगी-परिचय इतना, इतिहास यही उमड़ी कल थी, मिट आज चली.

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अचानक दिल्ली आना हुआ

मैंने दिल्ली को अपने कर्मक्षेत्र के रूप में नहीं चुना बल्कि दिल्ली ने मुझे चुना. शायद दिल्ली को मुझसे बहुत से काम करवाने थे. मुझे आईसीसीआर का फेलोशिप मिला था, उसी क्रम में दिल्ली आना हुआ और फिर आईसीसीआर की लाइब्रेरी ने मुझमें लालच जगा दिया और मैं यहीं की हो गयी. जर्नलिज़्म की परीक्षा में मैंने यूनिवर्सिटी में टॉप किया. दीक्षांत समारोह में पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजेअब्दुल कलाम साहब ने मुझे डिग्री दी और समारोह के बाद एक अनौपचारिक बातचीत में मुझसे कहा कि दोस्त आप जैसे युवाओं की ज़रूरत है देश को, दिल्ली को और वैसे भी आप पत्रकार बनने जा रही हैं तो आ रही हैं न दिल्ली…? और कलाम साहब के इन शब्दों ने मुझे दिल्ली बुला लिया. आज उन्हें और उनके साथ बिताए उन चंद लम्हों को याद करते हुए आंखें भर आई हैं.

सफलता का शार्टकट ना अपनाएं

हालांकि दिल्ली में वर्क प्रेशर बहुत ज़्यादा है. बिहार-झारखंड या किसी भी छोटे शहर में यह काम है. और पत्रकारिता ही नहीं किसी भी क्षेत्र में दिल्ली में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है बेहूदे टाइप के लोगो को हैंडल करना और उनसे निपटना. कदम- कदम पर भरे पड़े हैं ऐसे लोग. मेरी सबसे ज़्यादा पसंद की गयी रचना है मेरी एक लंबी कविता ‘एक बार फिर नाचो न इज़ाडोरा’. यही कविता पुस्तिका के रूप में 2011 में प्रकाशित हो चुकी है पर अभी कोई संग्रह नहीं आया है. इस वर्ष 5 मार्च को ही मुझे दिल्ली के एक थिएटर समूह नटसम्राट की ओर से 2017 के लिए बेस्ट थिएटर क्रिटिक अवार्ड से सम्मानित किया गया है. न्यूकमर्स के लिए यही सलाह कि दिल्ली को कल्पवृक्ष न समझें. शॉर्टकट न अपनाएं. दूसरी बात खुद में फ्रस्ट्रेशन न आने दें. मैं अपने शहर पटना को हर को बहुत बहुत मिस करती हूं. वहां की एक ही बात मुझे हर पल याद आती है और वो है… गंगा. आज भी हर सुबह और हर शाम गंगा को घंटों निहारने का मन होता है पर दिल्ली में कहां यह सुख.

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