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आडवाणी, जोशी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी में बाधा नहीं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी की मुश्किलें बढ़नेवाली है. इस वर्ष जुलाई में राष्ट्रपति के चुनाव होनेवाले हैं. कयास लगाया जा रहा था कि जोशी और आडवाणी इस पद के लिए प्रबल दावेदार हैं, लेकिन यह दावेदारी धरी की धरी रह सकती है. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना […]

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी की मुश्किलें बढ़नेवाली है. इस वर्ष जुलाई में राष्ट्रपति के चुनाव होनेवाले हैं. कयास लगाया जा रहा था कि जोशी और आडवाणी इस पद के लिए प्रबल दावेदार हैं, लेकिन यह दावेदारी धरी की धरी रह सकती है.

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी में इससे कोई कानूनी अड़चन नहीं है, लेकिन मामला नैतिकता और राष्ट्रपति पद की गरिमा का है. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि इन नेताओं के खिलाफ आरोप ट्रायल का विषय है. ट्रायल के बाद यह तय होगा कि ये दोषी हैं या नहीं. ऐसे में कानूनी तौर पर चुनाव लड़ने को लेकर कोई अड़चन नहीं है.

नैतिकता के पैमाने पर कल्याण का मामला
जहां तक कल्याण सिंह का सवाल है, तो इस पर हाइकोर्ट के पूर्व जस्टिस आरएस सोढ़ी कहते हैं कि कल्‍याण सिंह के खिलाफ अभी पद पर रहते मुकदमा नहीं चल सकता, क्योंकि संविधान के तहत राज्यपाल को छुट मिली हुई है. उनके पद से हटने के बाद उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है. सोढ़ी ने कहा कि यहां भी मामला नैतिकता का है. सिंह के खिलाफ नयी धाराएं लगायी गयी हैं और ऐसे में उन पर इस बात का दबाव पड़ सकता है कि नैतिकता के आधार पर वह इस्तीफा दे दें, लेकिन उनके खिलाफ पहले से भड़काऊ भाषण का केस पेंडिंग है. चूंकि मामला पब्लिक लाइफ से जुड़ा हुआ है, ऐसे में छूट की आड़ में ट्रायल फेस करने से नहीं बचना चाहिए.
* लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट
तत्कालीन केंद्र सरकार (नरसिम्हा राव) ने दोषियों को चिह्नित करने के लिए रिटायर्ड जस्टिस एमएस लिब्राहन की अध्यक्षता में 16 दिसंबर, 1992 को आयोग का गठन किया था. इसे तीन माह में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन यह सत्रह साल में अपना काम पूरा कर पाया. आयोग ने 48 बार कार्यकाल में विस्तार और करीब आठ करोड़ रुपये के खर्च के बाद 30 जून, 2009 को अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, एलके आडवाणी, कल्याण सिंह, मुरली मनहोर जोशी समेत 68 लोगों को दोषी बताया गया. रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में रखी जा चुकी है और बहस भी हुई है, लेकिन दो दशक के बाद भी इस रिपोर्ट पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
* फैसले का असर
बाल ठाकरे : आपराधिक साजिश रचने के आरोप में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का नाम भी शमिल है. हालांकि, ठाकरे का 17 नवंबर, 2012 को निधन हो गया था. इस वजह से अब इन पर केस नहीं चलेगा.
अशोक सिंघल : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन विश्व हिंदू परिषद का राम जन्मभूमि के लिए चलाये गये आंदोलन में महत्वपूर्ण भमिका थी. सिंघल का 17 नवंबर, 2015 को निधन हो गया था. इस वजह से उन पर केस नहीं चलेगा.
महंत अवैद्यनाथ : गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के पूर्व महंत अवैद्यनाथ राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख नेता थे. उनका 13 सितंबर, 2014 को निधन हो गया. इस वजह से उन पर भी मुकदमा नहीं चलेगा.
गिरिराज किशोर : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन में शामिल रहे गिरिराज किशोर का 14 जुलाई, 2014 को निधन हो गया था. वो विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता थे. उनका नाम इस सूची से हटा लिया जायेगा.
विनय कटियार : भाजपा नेता विनय कटियार उत्तर प्रदेश के फैजाबाद से आते हैं. इस समय वो राज्यसभा के सदस्य हैं. अगर ट्रायल के बाद दोषी करार दिये जाते हैं, तो उनको इस्तीफा देना होगा.

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