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नारेबाजी, झंडा फहराना बनी राष्ट्रीयता की पहचान, बोले जस्टिस एपी शाह

नयी दिल्ली : दिल्ली हाइकोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह ने कहा है कि संकीर्ण और स्वार्थी राष्ट्रवाद की सोच रखनेवाले लोगों ने विश्व का बड़ा अहित किया है. अतिरंजित राष्ट्रवाद के इस पंथ का आज तेजी से विस्तार हो रहा है. देश की राजधानी में कांस्टिट्यूशन क्लब में एमएन रॉय मेमोरियलव्याख्यानमें ‘फ्री […]

नयी दिल्ली : दिल्ली हाइकोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह ने कहा है कि संकीर्ण और स्वार्थी राष्ट्रवाद की सोच रखनेवाले लोगों ने विश्व का बड़ा अहित किया है. अतिरंजित राष्ट्रवाद के इस पंथ का आज तेजी से विस्तार हो रहा है.

देश की राजधानी में कांस्टिट्यूशन क्लब में एमएन रॉय मेमोरियलव्याख्यानमें ‘फ्री स्पीच, नेशनलिज्म एंड सेडीशन’ विषय पर अपने विचार रखते हुए जस्टिस शाह ने भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था कोभी कठघरे में खड़ा किया. कहा कि नारेबाजी और झंडा फहराना आज राष्ट्रीयता की पहचान बन गयी है. देश में लोगों को राष्ट्रगान के समय खड़ा होने के लिए मजबूर किया जा रहा है. लोगों को कहा जा रहा है कि वे क्या खायें और क्या नहीं खायें. यह भी बताया जा रहा है कि वे क्या देखें और क्या बोलें.

जस्टिस शाह ने कहा कि आज देश के विश्वविद्यालयों में झंडा फहराना और नारेबाजी करना राष्ट्रीयता साबित करने कापैमानाबन गया है.

गुरमेहर कौर का नाम लिये बगैर जस्टिस शाह ने कहा कि महज अपने विचार व्यक्त करने के लिए उसे सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्साझेलना पड़ा. उन्होंने कहा किआज देश के शिक्षण संस्थान‘खतरे में’ हैं. किसी भी स्वतंत्र विचार को नष्ट करने के प्रयास हो रहे हैं.

जस्टिस शाह ने कहा कि मौजूदा समय में हर उस शख्स को,जिसके विचार सरकार के विचार से अलग हैं, को तत्काल राष्ट्रविरोधी या देशद्रोही साबित करनेकी कोशिशें शुरू कर दी जाती हैं. ऐसे लोग, जो किसी भी व्यक्ति की आलोचना या उसकी आवाज को बरदाश्त करने के बजाय उन्हें धमकाते हैं, के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.

जस्टिस शाह ने सावरकर और कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के विचारों की तुलनाकरतेहुए बताया कि दोनों की नजर में राष्ट्रवाद क्या था. इन लोगों ने देश को किस नजरिये से देखा.

उन्होंने कहा कि भारत विविधताओं से भरा देश है. यहां के नागरिकों को विचारों की विविधता को भी स्वीकार करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘निश्चित रूप से हमें मतभिन्नता को स्वीकार करना चाहिए. राष्ट्रवाद या देशभक्ति पर जिन लोगों की राय आपसे अलग हो, उनकी आवाज दबाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए.’

जस्टिस शाह ने कहा कि राष्ट्र का एक प्रतिमान गढ़ने और किसी आंतरिक या बाह्य आलोचना को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति देश के नागरिकों को एक-दूसरे के समक्ष लाकर खड़ा कर देगी. यह घातक होगा.

जस्टिस शाह ने कहा कि सवाल पूछना जरूरी है. जरूरी है यह पूछना कि यह एक देश है या मात्र एक क्षेत्र, जहां लोग रहते हैं. शाह ने पूछा कि क्या सरकारविरोधी होना राष्ट्रविरोधी होने के समान है या उन्हें राष्ट्रविरोधी की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, जो जनता के हितों के खिलाफ हैं, विशेषकर अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग के?

दिल्ली हाइकोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमें बोलने या अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की जो आजादी मिली है, यह किसी राजनीतिक दल या सरकार का हम पर एहसान नहीं है. हमारे संविधान ने हमें यह अधिकार प्रदान किया है, जिसके लिए हमारे देश के लोगों ने दशकों तक संघर्ष किया. संघर्ष में लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी. उन्होंने कहा कि भारत का उत्थान पाकिस्तान की तरह धर्म के आधार पर नहीं हुआ.

जस्टिस शाह ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी आज खतरे में है. देश की अदालतें भी इसकी रक्षा नहीं कर रही. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाने और इस दौरान दर्शकों के खड़े होने को अनिवार्य बनाने के फैसले को बहाल रखा था.

उन्होंने कहा कि अभिव्यक्तिकी एकतरफा रिपोर्टिंग करके मीडिया भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन में मददगार बन रहा है. उन्होंने कहा कि एक चैनल फुटेज में छेड़छाड़ के आधार पर बनी गलत खबर दिखाता है, तो दूसरा चैनल उसी खबर पर एक पैनल डिबेट शुरू कर देता है,जिसमें देशभक्ति और राष्ट्रविरोधी तत्वों पर खूब चर्चा होती है. यह राष्ट्रविरोधी ताकतों ईंधन-पानी देने का काम करता है.

जस्टिस शाह ने कहा कि क्या विडंबना है कि जिस मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी के लिए इमरजेंसी (आपातकाल) के दौरान और उसके बाद जबरदस्त संघर्ष किया, वही मीडिया आज शोषित-पीड़ित और आंदोलित लोगों की आवाज को दबाने के लिए समझौता कर रहा है.

जस्टिस शाह ने अंत में फैज की एक कविता अंगरेजी में पढ़ी, जो इस प्रकार है :

Speak, for your lips are free;
Speak, your tongue is still yours
Your upright body is yours
Speak, your life is still yours
Speak, this little time is plenty
Before the death of body and tongue
Speak, for truth is still alive
Speak, say whatever is to be said.

मूल कविता ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’ इस प्रकार है :

बोल कि लब आजाद हैं तेरे
बोल जबां अब तक तेरी है
तेरा सुतवां जिस्म है तेरा
बोल कि जां अब तक तेरी है
देख के आहंगर की दुकां में
तुंद हैं शोले सुर्ख है आहन
खुलने लगे कुफ्फलों के दहाने
फैला हर एक जंजीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक्त बहुत है
जिस्म-ओ-जबां की मौत से पहले
बोल कि सचजिंदाहै अब तक
बोल जो कुछ कहना है कह ले.

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