आजादी का मतलब कुछ भी बोलना नहीं

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के उस बयान को स्तब्ध करने वाला बताया है जिसमें उन्होंने यमुना के डूबक्षेत्रों को हुए नुकसान के लिए केंद्र एवं हरित पैनल को दोषी बताया है. एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षतावाली पीठ ने कहा, ‘आपको जिम्मेदारी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 21, 2017 9:04 AM

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के उस बयान को स्तब्ध करने वाला बताया है जिसमें उन्होंने यमुना के डूबक्षेत्रों को हुए नुकसान के लिए केंद्र एवं हरित पैनल को दोषी बताया है. एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षतावाली पीठ ने कहा, ‘आपको जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं है. आपको बोलने की आजादी है, तो क्या आप कुछ भी बोल देंगे. यह स्तब्ध करनेवाला है.’ याचिकाकर्ता मनोज मिश्रा की ओर से पेश हुए वकील संजय पारिख ने पीठ को सूचित किया था कि रवि शंकर ने हाल में एक बयान देकर यमुना नदी के डूबक्षेत्रों में विश्व संस्कृति उत्सव आयोजित करने की अनुमति उनके एनजीओ को देने के लिए सरकार और एनजीटी को जिम्मेदार ठहराया है जिसके बाद पीठ ने यह बात कही.

पारिख ने हरित पीठ को बताया कि श्री श्री ने आर्ट ऑफ लिविंग की वेबसाइट, अपने फेसबुक पेज पर यह बयान पोस्ट किया है और उन्होंने इस बात पर लिखित बयान देकर मीडिया को संबोधित किया. हालांकि आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के लिए पेश हुए वकील ने विशेषज्ञ पैनल के निष्कर्ष का विरोध किया और कहा कि उन्हें समिति के निष्कर्ष को लेकर कुछ आपत्तियां हैं और उन्होंने रिपोर्ट को दरकिनार किये जाने की अपील की. इसके बाद पीठ ने फाउंडेशन और अन्य पार्टियों को इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया और आपत्ति दो सप्ताह में दायर कराने को कहा और मामले की आगे की सुनवाई के लिए नौ मई की तारीख तय की.

सभी संस्थाओं से जरूरी अनुमति ली थी
रविशंकर ने यमुना के डूब क्षेत्र पर एओएल की ओर से विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के आयोजन की अनुमति दिये जाने के लिए 18 अप्रैल को सरकार और एनजीटी पर ठीकरा फोड़ा था. उन्होंने कहा था कि यदि पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचा है, तो इसके लिए सरकार और एनजीटी को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. एओएल के प्रमुख ने कहा था कि फाउंडेशन ने एनजीटी सहित सभी संस्थाओं से सभी जरूरी अनुमति ले ली थीं. यदि यमुना नदी इतनी ही सुकुमार और पवित्र है तो कार्यक्रम शुरू में ही रोक देना चाहिए था.

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