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यूरोप के प्रदूषण से भारत में पड़ा सूखा

नयी दिल्ली :भारत में सूखे की वजह यूरोप का बढ़ता प्रदूषण है. इसकी वजह से देश में करीब 13 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए. लंदन के इंपीरियल कॉलेज में हुए शोध में यह बात सामने आयी है. इस शोध के आधार पर इंगलैंड के अखबार द इंडिपेंडेंट में छपी खबर के मुताबिक, वर्ष 2000 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2017 7:38 AM
नयी दिल्ली :भारत में सूखे की वजह यूरोप का बढ़ता प्रदूषण है. इसकी वजह से देश में करीब 13 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए. लंदन के इंपीरियल कॉलेज में हुए शोध में यह बात सामने आयी है. इस शोध के आधार पर इंगलैंड के अखबार द इंडिपेंडेंट में छपी खबर के मुताबिक, वर्ष 2000 में यूरोप में काेयला से चलनेवाले बिजली संयंत्रों और उद्योगों से निकलनेवाले सल्फर डाइआक्साइड ने भारत में बारिश को बहुत बड़े पैमाने पर प्रभावित किया.
उत्तरी गोलार्द्ध के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों से होनेवाले उत्सर्जन की वजह से भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में होनेवाली वर्षा में 40 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गयी. अकेले यूरोप के ही उत्सर्जन से यहां के दक्षिण पश्चिमी और पश्चिमोत्तर क्षेत्र में होनेवाली वर्षा में 10 फीसदी की गिरावट आयी.
कोयला से चलनेवाले बिजली संयंत्र से बननेवाले सल्फर डाइऑक्साइड के कई हानिकारक प्रभाव होते हैं. इसकी वजह से ऐसिड रेन, दिल और फेफड़े की बीमारी के साथ ही पेड़-पौधों की वृद्धि पर भी असर पड़ता है. आइसीएल ग्रांथम इंस्टिट्यूट के डॉ एपोस्तोलोस वुलगाराकिस ने बताया, ‘शोध से पता चला कि दुनिया के एक हिस्से में होनेवाले उत्सर्जन से दूसरे हिस्से में कैसे प्रभाव डाल सकता है. पास में होने की वजह से पूर्वी एशिया अधिक असर डाल रहा है, लेकिन यूरोप और यूएस का भी असर अधिक है.’ 1990 से 2011 के दौरान यूरोप में 74 फीसदी की गिरावट के बावजूद दुनिया के गर्म होने की वजह से भारत में सूखे की स्थिति बरकरार रही.
जटिल है प्रदूषण के कारकों की प्रकृति
शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रदूषण के कारकों की प्रवृत्ति बहुत कांप्लेक्स है. सल्फेट ऐरोसॉल का वातावरण पर प्रभाव ठंडा होता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि यह सूरज की किरणों को वापस भेज देता है. लेकिन, यह प्रदूषण का स्तर बढ़ाता है. इससे सूखे का खतरा भी रहता है.
चेता यूरोप
सल्फर डाइआक्साइड से वातावरण को होनेवाले नुकसान की वजह से यूरोप ने वैसे ईंधन से दूरी बनानी शुरू कर दी, जिसमें सल्फर की मात्रा अधिक रहती है. 1990 की तुलना में 2011 में इसमें 74 फीसदी की गिरावट आयी है. वर्ष 2000 की तुलना में 2011 में सल्फर डाइआक्साइड के उत्सर्जन आधा हो गया.

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