छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ही नहीं कई और दुश्मनों से भी लड़ रहे हैं सीआरपीएफ के जवान

नयी दिल्ली : छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के कर्मियों को अकेले नक्सलियों से ही नहीं लड़ना पड़ रहा है, बल्कि उन्हें गर्मी और पेयजल की किल्लत से ले कर खराब मोबाइल नेटवर्क तक अनेक दिक्कतों से भी जूझना पड़ रहा है. बस्तर के दूरदराज के इलाकों में सीआरपीएफ के कुछ शिविरों का जायजा ले चुके अधिकारियों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 30, 2017 12:19 PM

नयी दिल्ली : छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के कर्मियों को अकेले नक्सलियों से ही नहीं लड़ना पड़ रहा है, बल्कि उन्हें गर्मी और पेयजल की किल्लत से ले कर खराब मोबाइल नेटवर्क तक अनेक दिक्कतों से भी जूझना पड़ रहा है. बस्तर के दूरदराज के इलाकों में सीआरपीएफ के कुछ शिविरों का जायजा ले चुके अधिकारियों ने पाया कि वहां उन्हें पीने का पानी बहुत खराब मिल रहा है जिससे कई लोग बीमार पड़ रहे हैं.

एक अधिकारी ने बताया, ‘‘हम पेय जल साफ करने के लिए अनेक कदम उठाते हैं. लेकिन ये काफी नहीं होता क्योंकि जब जवान गश्त पर जाते हैं तो उन्हें खुले स्रोतों में उपलब्ध पानी पीना पड़ता है जिससे वे बीमार पड़ते हैं.’ अधिकारियों ने बताया कि गर्मियों के दौरान बस्तर के इलाकों में पारा 45 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है और इस तरह के गर्म और उमस भरे मौसम में सुरक्षाकर्मी जल्द ही निढाल हो जाते हैं. इससे उनमें हताशा होती है.

सुकमा नक्सली हमला : पांच साल के पुत्र ने दी शहीद पिता को मुखाग्नि

उल्लेखनीय है कि बस्तर के इसी इलाके में सोमवार को नक्सली हमले में 25 सीआरपीएफ कर्मी मारे गए थे. अर्धसैनिक बल के जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए तमाम शिविरों में उन्हें पोषाहार दिया जा रहा है जिसमें मांसाहार भी शामिल है.
गृहमंत्रालय के अधिकारियों ने महसूस किया कि सीआरपीएफ शिविरों के हालात सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरुरत है. गृहमंत्रालय में वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के. विजय कुमार ने बताया, ‘‘सीआरपीएफ के शिविरों का उन्नयन जरुरी है.’
खराब मोबाइल नेटवर्क भी सीआरपीएफ कर्मियों के लिए दिक्कतें खड़ी कर रहे हैं. इसकी वजह से वे अपने घर-परिवार से बात नहीं कर पाते. इससे भी उनका मनोबल गिरता है. छत्तीसगढ़ के नक्सली गढ़ सुकमा में लंबे समय से तैनात सीआरपीएफ कर्मियों में थकान और सुस्ती के लक्षण दिख रहे हैं.
सीआरपीएफ कर्मियों की हत्या के बाद छत्तीसगढ़ के दौरे पर गए गृहमंत्रालय के अधिकारियों ने पाया कि बस्तर क्षेत्र में उच्च जोखिम वाले नक्सल विरोधी अभियान चला रहे अर्धसैनिक बलों के 45 हजार कर्मियों में ज्यादातर वहां तीन साल से ज्यादा अरसे से तैनात हैं.
एक अधिकारी ने बताया, ‘‘जवानों में थकान और सुस्ती महसूस की गई क्योंकि उनमें से बड़ी संख्या में लोग सुकमा में पिछले पांच साल से तैनात हैं जबकि सामान्य रुप से उन्हें वहां तीन साल के लिए होना चाहिए था.’ उन्होंने कहा कि इलाके में लंबे समय से तैनाती के चलते जवानों की प्रेरणा में गिरावट आई है.
बस्तर में तैनाती बहुत तनावपूर्ण है और जवान वहां के मुकाबले दूसरी जगह आतंकवाद विरोधी अभियानों में, यहां तक कि कश्मीर में शामिल होना ज्यादा पसंद करते हैं जहां उन्हें लगातार आतंकवादी हमलों और पथराव करने वाली भीड़ से जूझना होता है.

Next Article

Exit mobile version