न्यायपालिका से क्यों टकराये एक जज, आप भी पढ़ें देश में पहली बार न्यायपालिका में टकराव की कथा
नयी दिल्ली : देश के इतिहास में पहली बार न्यायपालिका में आंतरिक टकराव की स्थिति है. भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक जज को काम करने से रोक दिया. उनके सारे अधिकार छीन लिये. दूसरी तरफ अधिकारविहीन जज ने देश के मुख्य न्यायाधीश समेत कई जजों पर ताबड़तोड़ एक के बाद एक कई कार्रवाई कर […]
नयी दिल्ली : देश के इतिहास में पहली बार न्यायपालिका में आंतरिक टकराव की स्थिति है. भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक जज को काम करने से रोक दिया. उनके सारे अधिकार छीन लिये. दूसरी तरफ अधिकारविहीन जज ने देश के मुख्य न्यायाधीश समेत कई जजों पर ताबड़तोड़ एक के बाद एक कई कार्रवाई कर डाली. मुख्य न्यायाधीश और संविधान पीठ में शामिल छह अन्य जजों पर एक दलित जज के उत्पीड़न के आरोप लगा दिये.
जस्टिस कर्णन ने चीफ जस्टिस खेहर समेत आठ जजों को सुनायी पांच साल की सजा
दरअसल, जस्टिस कर्णन ने 23 जनवरी, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों के 20 जजों की सूची भेजी. इन सभी जजों को भ्रष्ट बताते हुए जस्टिस कर्णन ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की मांग की.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माना और आठ फरवरी, 2017 को कर्णन के खिलाफ नोटिस जारी कर दिया.
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इससे पहले, जस्टिस कर्णन जब मद्रास हाइकोर्ट में जज थे, तब उन्होंने अपने तबादले पर खुद ही रोक लगा दी थी. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें किसी प्रकार के न्यायिक आदेश जारी करने से रोक दिया था. कुछ महीनों बाद राष्ट्रपति के हस्तक्षेप के बाद जस्टिस कर्णन ने कलकत्ता हाइकोर्ट में योगदान दिया.
जस्टिस कर्णन शुरू से ही कॉलेजियम पर आरोप लगाते रहे हैं कि यहां दलित विरोधी नीति अपनायी जाती है. उनका आरोप है कि वर्ष 2011 से पहले के और मौजूदा जजों ने उन्हें प्रताड़ित किया, क्योंकि वे दलित हैं.
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वर्ष 2016 में जस्टिस कर्णन का सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने कलकत्ता हाइकोर्ट में ट्रांसफर किया, तो उन्होंने कहा था कि उन्हें (जस्टिस कर्णन को) दुख है कि वह भारत में पैदा हुए हैं और वह ऐसे देश में जाना चाहते हैं, जहां जातिवाद न हो.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस कर्णन के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहला मौका था, जब हाइकोर्ट के किसी मौजूदा जज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई की हो.
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दूसरी तरफ, जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश को मानने से इनकार कर दिया. अवमानना मामले में पेश नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी करते हुए उन्हें न्यायिक और प्रशासननिक कार्यों से अलग कर दिया.
अपने खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई से जस्टिस कर्णन इतने आहत हुए कि उन्होंने चीफ जस्टिस समेत सात जजों की विदेश यात्रा पर रोक लगा दी. इन सभी के खिलाफ सीबीआइ जांच के आदेश दे दिये. और तो और, देश के मुख्य न्यायाधीश समेत सात जजों को पांच साल की सजा भी सुना दी. साथ ही न्यायिक खर्च के भुगतान की भी मांग कर डाली.