तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार से शुरू होगी सुनवाई
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय मुसलमानों में ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर गुरुवार से सुनवाई शुरू करेगा. चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षतावाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी. इनमें पांच याचिकाएं मुसलिम महिलाओं ने दायर की हैं जिनमें मुसलिम […]
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय मुसलमानों में ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर गुरुवार से सुनवाई शुरू करेगा. चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षतावाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी. इनमें पांच याचिकाएं मुसलिम महिलाओं ने दायर की हैं जिनमें मुसलिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया है.
इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं. संविधान पीठ स्तत: ही लिये गये मुख्य मसले को ‘मुसलिम महिलाओं की समानता की जुस्तजू’ नाम की याचिका के रूप में भी विचार के लिए लेगी. संविधान पीठ के सदस्यों में सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुसलिम सहित विभिन्न धार्मिक समुदाय से हैं.
इस मामले की सुनवाई इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि शीर्ष अदालत ने ग्रीष्मावकाश के दौरान इस पर विचार करने का निश्चय किया और उसने यहां तक सुझाव दिया कि वह शनिवार और रविवार को भी बैठ सकती है, तो इस मामले में उठे संवेदनशील मुद्दों पर शीघ्रता से निर्णय किया जा सके. अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी इस मामले में संविधान पीठ की मदद करेंगे और यह भी देखेंगे कि मुसलिम पर्सनल लाॅ में न्यायालय किस सीमा तक हस्तक्षेप कर सकता है. शीर्ष अदालत ने स्वत: ही इस सवाल का संज्ञान लिया था कि क्या महिलाएं तलाक अथवा उनके पतियों द्वारा दूसरी शादी के कारण लैंगिक पक्षपात का शिकार होती हैं.
शीर्ष अदालत इस मसले पर विचार करके मुसलिम समाज में प्रचलित ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिकता और वैधता पर अपना सुविचारित निर्णय भी देगी. इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब बताया था. उच्च न्यायालय ने अकील जमील की याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया था. अकील की पत्नी ने उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दायर करके आरोप लगया है कि वह दहेज की खातिर उसे यातना देता था और जब उसकी मांग पूरी नहीं हुयी तो उसने उसे तीन तलाक दे दिया.