न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रही आम आदमी पार्टी की सरकार

नयी दिल्ली: आम आदमी पार्टी जब सत्ता में आयी थी, तो यह वादा किया था कि वह आम लोगों की सुख-सुविधाअों का ख्याल रखेगी. लोगों के हितों में कानून बनायेगी. लेकिन, दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा है कि इस सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूूरी काफी कम और अपर्याप्त है. कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 13, 2017 10:07 AM

नयी दिल्ली: आम आदमी पार्टी जब सत्ता में आयी थी, तो यह वादा किया था कि वह आम लोगों की सुख-सुविधाअों का ख्याल रखेगी. लोगों के हितों में कानून बनायेगी. लेकिन, दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा है कि इस सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूूरी काफी कम और अपर्याप्त है.

कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में मौजूदा आर्थिक स्थिति में किसी व्यक्ति के रहन-सहन के लिहाज से आप सरकार द्वारा हाल में अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी काफी कम और अपर्याप्त है.

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हाइकोर्ट ने दिल्ली सरकार की अधिसूचना को चुनौती देनेवाले व्यापारियों, पेट्रोल डीलरों और रेस्तरां मालिकों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. हाइकोर्ट ने यह भी कहा कि ये याचिकाकर्ता हलफनामे में यह कह पाने की स्थिति में नहीं हैं कि वे अपने कर्मचारियों को श्रम कानून के तहत सभी प्रकार के लाभ दे रहे हैं.

दिल्ली सरकार के तीन मार्च की अधिसूचना के अनुसार, अकुशल, अर्द्ध-कुशल और कुशल श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी क्रमः 13,350 रुपये, 14,698 रुपये तथा 16,182 रुपये नियत किया गया है.

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कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायाधीश अन्नू मल्होत्रा की पीठ ने कहा, ‘किसी व्यक्ति का जीवन यापन 13,000 रुपये में संभव है? किसी व्यक्ति के लिए काम पर आने-जाने का औसत खर्च प्रतिदिन 100 रुपये है, जो महीने में 3,000 रुपये बनता है. आप कहां खाते हैं? खाने पर 50 रुपये प्रतिदिन का खर्च आयेगा. 13,000 रुपये की राशि बहुत कम है. यह अपर्याप्त है.’

पीठ ने व्यापारियों, डीलरों तथा रेस्तरां का प्रतिनिधित्व करनेवाले संगठनों और नियोक्ताओं से अधिक सक्रिय भूमिका निभाने को कहा. साथ में यह भी कहा कि अगर वे सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी से नाखुश हैं, तो उन्हें निर्णय करना चाहिए कि आखिर न्यूनतम मजदूरी क्या हो.

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हाइकोर्ट ने कहा, ‘आप कर्मचारियों को देखिये. उन्हें अपना परिवार भी चलाना होता है और आप न्यूनतम मजदूरी 13,000 से 16,000 करने को चुनौती दे रहे हैं.’ हालांकि, अदालत ने यह भी आदेश दिया कि उन नियोक्ताओं के खिलाफ 11 सितंबर तक कोई कार्रवाई नहीं होगी, जिन्होंने अधिसूचना लागू नहीं की है.

पीठ ने कहा कि कर्मचारियों के साथ भेदभाव होता है, क्योंकि मांग के मुकाबले आपूर्ति अधिक है. अदालत ने कहा कि कोई भी याचिकाकर्ता हलफनामे में यह कहने की स्थिति में नहीं है कि वे श्रम कानून के तहत उपलब्ध लाभ अपने कर्मचारियों को दे रहे हैं.

पीठ ने लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय तथा दिल्ली सरकार के श्रम विभाग को नोटिस जारी कर नियोक्ताओं की याचिकाओं पर 11 सितंबर तक अपना रुख स्पष्ट करने को कहा.

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