एआइएमपीएलबी ने तीन तलाक पर कहा- 1400 वर्षों से मुसलिम कर रहे पालन, दखल न दे कोर्ट

नयी दिल्ली : तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान मंगलवार को ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत के समक्ष कई दिलचस्प दलीलें पेश कीं. सिब्बल ने तीन तलाक को मुसलिमों की आस्था का मुद्दा बताते हुए उसकी तुलना भगवान राम के अयोध्या में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 17, 2017 9:04 AM

नयी दिल्ली : तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान मंगलवार को ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत के समक्ष कई दिलचस्प दलीलें पेश कीं. सिब्बल ने तीन तलाक को मुसलिमों की आस्था का मुद्दा बताते हुए उसकी तुलना भगवान राम के अयोध्या में जन्म से की. उन्होंने कहा कि तीन तलाक आस्था से जुड़ा से विषय है. ठीक उसी तरह जैसे कि मान लीजिए अगर मेरी आस्था राम में है, तो मेरा मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर भगवान राम के अयोध्या में जन्म लेने को लेकर हिंदुओं की आस्था पर सवाल नहीं उठाये जा सकते, तो तीन तलाक पर क्यों? इसलिए इस मामले में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए.

सिब्बल ने कहा कि तीन तलाक सन् 637 से है. इसे गैर-इसलामी बतानेवाले हम कौन होते हैं. मुसलिम बीते 1,400 वर्षों से इसका पालन करते आ रहे हैं. यह आस्था का मामला है. इसलिए इसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का कोई सवाल नहीं उठता. उन्होंने एक तथ्य का हवाला देते हुए कहा कि तीन तलाक का स्रोत हदीस में पाया जा सकता है और यह पैगम्बर मोहम्मद के समय के बाद अस्तित्व में आया.

मुसलिम संगठन ने ये दलीलें जिस पीठ के समक्ष दी, उसका हिस्सा जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर भी हैं. मालूम हो कि सोमवार को केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि यदि ‘तीन तलाक’ समेत तलाक के सभी रूपों को खत्म कर दिया जाता है, तो मुसलिम समुदाय में निकाह और तलाक के नियमन के लिए वह नया कानून लेकर आयेगा.

आस्था और विश्वास को तय न करे कोर्ट : सिब्बल

सिब्बल ने कहा कि कोर्ट को किसी की आस्था और विश्वास को न तो तय करना चाहिए और न ही उसमें दखल देना चाहिए. इस पर जस्टिस आरएफ नरीमन ने पूछा, क्या आप यह कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए? इस पर सिब्बल ने कहा, हां, आपको नहीं करनी चाहिए. अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए सिब्बल ने कहा कि अगर निकाह और तलाक दोनों कॉन्ट्रैक्ट हैं, तो दूसरों को इससे समस्या क्यों होनी चाहिए? खास तौर पर तब, जब इसका पालन 1400 वर्षों से किया जा रहा है.

हिंदू कानून पर परंपराओं का संरक्षण क्यों?

मुसलिम संगठन ने शीर्ष अदालत से कहा कि दहेज निषेध और गार्जियनशिप पर कानून होने के बावजूद इस तरह की हिंदू विवाह की परंपराओं को बनाये रखा जा रहा है. जहां दहेज निषिद्ध है, लेकिन उपहारों की अनुमति है. जब हिंदू कानून की बात आती है, तो आप सभी परंपराओं का संरक्षण करते हैं, लेकिन जब मुसलिम समुदाय की बात आती है, तो आप परिपाटियों पर सवाल खड़े करने शुरू कर देते हैं.

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