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SC ने AIMPLB से पूछा- क्या यह संभव है कि दुल्हन को ट्रिपल तलाक को ”ना” कहने का अधिकार मिले ?

undefined नयी दिल्ली : तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएसखेहर ने कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या यह संभव है कि दुल्हन को ट्रिपल तलाक को ना कहने का अधिकार मिल सके ? आपको बता दें कि सिब्बल एआईएमपीएलबी के पक्षकार हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 17, 2017 11:28 AM

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नयी दिल्ली : तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएसखेहर ने कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या यह संभव है कि दुल्हन को ट्रिपल तलाक को ना कहने का अधिकार मिल सके ? आपको बता दें कि सिब्बल एआईएमपीएलबी के पक्षकार हैं. तीन तलाक के मामले पर आज भी सुप्रीम कोर्ट में पांचवें दिन सुनवाई जारी है.

बेटी को जन्म दिया तो पति ने दी ‘ट्रिपल तलाक’ की धमकी

कोर्ट ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या महिलाओं को ‘निकाहनामा’ के समय ‘तीन तलाक’ को ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि क्या सभी ‘काजियों’ से निकाह के समय इस शर्त को शामिल करने के लिए कहा जा सकता है. पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी शामिल हैं. न्यायालय ने पूछा, ‘‘क्या यह संभव है कि मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामा के समय ‘तीन तलाक’ को ‘ना’ कहने का विकल्प दे दिया जाए?’

एआइएमपीएलबी ने तीन तलाक पर कहा- 1400 वर्षों से मुसलिम कर रहे पालन, दखल न दे कोर्ट

पीठ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की ओर से पैरवी कर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से जवाब मांगते हुए कहा, ‘‘हमारी तरफ से कुछ भी निष्कर्ष ना निकालें.’ तीन तलाक, बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई का आज पांचवां दिन है. पीठ में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सहित विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्य शामिल हैं.

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मंगलवार को एआईएमपीएलबी ने कहा था कि ‘तीन तलाक’ ऐसा ही मामला है जैसे यह माना जाता है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए थे। इसने कहा था कि ये धर्म से जुडे मामले हैं और इन्हें संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखा जा सकता.

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