कुलभूषण केस: पाकिस्तान के पांच करोड़ी वकील पर भारी पड़े भारत के एक रुपये वाले साल्वे

नयी दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की तरफ से पेश हुए वकील हरीश साल्वे द्वारा जाधव के बचाव में पुख्ता दलीलें दिये जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और तमाम दूसरे नेताओं ने उनकी प्रशंसा की. जैसे ही फैसला आया, प्रधानमंत्री मोदी ने तत्काल विदेश मंत्री स्वराज को फोन कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 19, 2017 1:34 PM

नयी दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की तरफ से पेश हुए वकील हरीश साल्वे द्वारा जाधव के बचाव में पुख्ता दलीलें दिये जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और तमाम दूसरे नेताओं ने उनकी प्रशंसा की. जैसे ही फैसला आया, प्रधानमंत्री मोदी ने तत्काल विदेश मंत्री स्वराज को फोन कर उन्हें धन्यवाद दिया और साल्वे के प्रयासों की सराहना की. आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की तरफ से पैरवी करते हुए जहां मशहूर वकील हरीश साल्वे ने 1 रुपये फीस ली तो वहीं पाकिस्तान के वकील खैबर कुरैशी ने 5 करोड़ फीस ली. पाकिस्तान को मिली पटखनी से पड़ोसी मुल्क में रोष का माहौल है.

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काफी अनुभवी हैं हरीश साल्वे
भारत की तरफ से पैरवी के लिए महज एक रुपये का सांकेतिक शुल्क लेने वाले वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने लंदन में एक समाचार चैनल से कहा, ‘40 वर्षों से वकालत कर रहे एक वकील के तौर पर आपको यह महसूस हो जाता है कि जजों की प्रतिक्रिया कैसी है. जब मैं मामले में जिरह कर रहा था तो मुझे सकारात्मक ऊर्जा महसूस हो रही थी. मुझे महसूस हुआ कि न्यायाधीश जुड़ रहे थे. मैं संतुष्ट महसूस कर रहा हूं. जब दूसरा पक्ष जिरह कर रहा था, तो मुझे वैसा जुड़ाव नहीं लग रहा था.’ साल्वे ने ‘यह एक जटिल मुद्दा था. हमनें कड़ी मेहनत की और प्रथम दृष्टया हमारे सभी बिंदु स्वीकार्य किये गये.’ सुषमा ने ट्वीट किया, ‘हम आइसीजे के सामने भारत का पक्ष इतने प्रभावी तरीके से रखने के लिए हरीश साल्वे के शुक्रगुजार हैं.

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बोला पाकिस्तान- नाकाबिल थे हमारे वकील
पाक के रिटायर्ड जस्टिस शेख उस्मानी ने कहा कि आइसीजे के पास फैसले देने का अधिकार नहीं है. यह पाकिस्तान की गलती है कि वह इस केस के लिए आइसीजे की बहस में शामिल हुआ. ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था. पूर्व अटॉर्नी जनरल इरफान कादिर ने कहा कि हमारे वकील अनुभवहीन थे.
कुछ खास: तीन मामले, जिनमें आइसीजे की हुई अनदेखी

1. मैक्सिको बनाम अमेरिका:
2003 में मैक्सिको अपने 54 नागरिकों को मिली मौत की सजा के संबंध में अमेरिका के खिलाफ आइसीजे में गया. मैक्सिको ने आदेश आने तक फांसी न देने की अपील की.लेकिन, अमेरिका के न्यायालय ने इसे नहीं माना.
2. जर्मनी बनाम अमेरिका:
1982 में सशस्त्र लूटपाट और हत्या के संदेह में जर्मन नागरिक वाल्टर लाग्रैंड और उसके भाई कार्ल की गिरफ्तारी हुई. 1999 में अमेरिका के खिलाफ कार्यवाही शुरू की. दोनों भाइयों की फांसी से एक दिन पहले अपील दायर की गयी. हालांकि मामला शुरू होने से पहले ही कार्ल को और फिर वाल्टर को फांसी दी गयी.
3. पराग्वे बनाम अमेरिका:
पराग्वे 1998 में अपने नागरिक फ्रांसिस्को ब्रिअर्ड की गिरफ्तारी के खिलाफ अमेरिका को आइसीजे में ले गया. आइसीजे ने अंतिम फैसला आने तक अमेरिका से ब्रिअर्ड की फांसी को रोकने को कहा. लेकिन ब्रिअर्ड को फैसले के पांच दिन बाद 14 अप्रैल को फांसी दे दी गयी. पराग्वे ने बाद में मामला वापस ले लिया.
फैसला देने वाले जज
जस्टिस जॉनी अब्राहम
1951 में मिस्र में जन्मे. 1973 में पेरिस यूनिवर्सिटी से पब्लिक लॉ में डिप्लोमा. 1998 में पेरिस में ही अंतराराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर बने. 2005 सेआइसीजे के सदस्य हैं. छह फरवरी 2015 को उन्हें कोर्ट का प्रेसिडेंट चुना गया.
आइसीजे में भारत के भी जज
पद्मभूषण से सम्मानित दलबीर भंडारी. 40 साल से भी ज्यादा समय तक वकालत का अनुभव. 1973 से 1976 तक राजस्थान हाइकोर्ट में वकालत. 1991 में दिल्ली हाइकोर्ट के जज. फिर बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश बने. 2005 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने.

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