नयी दिल्ली : इसरो ऐसे स्वदेशी रॉकेट को विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है, जिसका वजन 200 हाथियों के बराबर होगा. यह रॉकेट संभवत: भविष्य में भारतीय जमीन से भारतीयों को अंतरिक्ष का सैर करायेगा. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र में देश में निर्मित सबसे भारी रॉकेट ‘भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क-3’ (जीएसएलवी एमके-3) विकसित किया जा रहा है. यह रॉकेट अब तक के सबसे भारी उपग्रहों को ले जाने में सक्षम होगा. इस नये रॉकेट को विकसित करने की लागत 300 करोड़ रुपये है.
इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा कि हम हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि यह भारतीय रॉकेट अपने पहले ही प्रक्षेपण में सफल हो. यह जीएसएलवी एमके-3 का पहला प्रायोगात्मक परीक्षण होगा. एक दशक में सब सही रहने पर या कम से कम छह सफल प्रक्षेपणों के बाद इस रॉकेट का इस्तेमाल भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए किया जायेगा.
सरकार पैसा देगी, तो मानवीय उड़ान तय
इसरो की योजना के मुताबिक, यदि सरकार उसे तीन से चार अरब डॉलर तक राशि की मंजूरी दे देती है, तो वह अंतरिक्ष में दो-तीन सदस्यीय चालक दल को ले जायेगा. यदि यह मानवीय उपक्रम हकीकत में बदल जाता है, तो भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद चौथा ऐसा देश बन जायेगा, जिसका एक मानवीय अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम होगा. इसरो का कहना है कि अंतरिक्ष में जानेवाली पहली भारतीय महिला हो सकती है.
प्रक्षेपण की तैयारी में जुटे हैं इंजीनियर
मॉनसून से पहले की भीषण गर्मी में भारत के प्रक्षेपण केंद्र में इसरो के इंजीनियर पूरी तरह से देश में निर्मित रॉकेट प्रक्षेपित करने की तैयारी कर रहे हैं. यह नया रॉकेट भूस्थैतिक कक्षा में चार टन वर्ग के उपग्रह ले जाने में सक्षम है. इस समय भारत भारी चार टन वर्ग के संचार उपग्रहों को स्थपित करने के लिए दक्षिण अमेरिका के कोउरोउ से प्रक्षेपित फ्रेंच एरियन-5 का इस्तेमाल करता है.
पीएसएलवी से दोगुना बड़ा
जीएसएलवी मार्क-3 का एक उपकक्षीय सफल प्रक्षेपण किया गया था. इसकी लंबाई 43 मीटर है, जो तीन बड़े भारतीय रॉकेटों में सबसे छोटा है, लेकिन यह भारत के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी एमके-2 से 1.5 गुणा अधिक है और पीएसएलवी से दोगुना है. इस रॉकेट का डिजाइन शानदार है. यह दो एसयूवी के बराबर वजन अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है.