AAP: दिल्ली में अधिकारों को लेकर एक बार फिर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव बढ़ता दिख रहा है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के उपराज्यपाल के अधिकार में इजाफा करने के फैसले को एक बार फिर आम आदमी पार्टी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है. मंगलवार देर रात गृह मंत्रालय की ओर से जारी गजट में उपराज्यपाल को किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग और वैधानिक निकाय के गठन का अधिकार दिया गया है. इस अधिसूचना के बाद एक बार फिर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकार को लेकर बहस तेज होने की संभावना है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर केंद्र का अधिकार होगा, जबकि अन्य सभी मामलों में चुनी हुई सरकार फैसला ले सकती है. अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार भी दिल्ली सरकार को दिया गया. इस फैसले के बाद संसद में दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 को पारित किया गया. इस अधिनियम में दिल्ली के उपराज्यपाल के कई तरह के अधिकार दिए गये.
विवाद की वजह क्या
दिल्ली में पहली बार विधानसभा का चुनाव वर्ष 1952 में हुआ और चौधरी ब्रह्म प्रकाश मुख्यमंत्री बने. उस समय दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल था. लेकिन वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग के गठन के बाद दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बन गया. वर्ष 1991 में दिल्ली में विधानसभा का गठन किया गया लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया गया. संविधान में 69वां संशोधन कर दिल्ली को नेशनल कैपिटल टेरिटरी का दर्जा दिया गया और संविधान में धारा 239 एए जोड़ दिया गया. इसमें प्रावधान किया गया कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद होने पर राष्ट्रपति का फैसला ही मान्य होगा. इस कानून के तहत दिल्ली में वर्ष 2013 तक सुचारू रूप से काम चलता रहा. लेकिन आम आदमी की सरकार बनने के बाद विवाद बढ़ता गया और यह तकरार अब तक जारी है.