भारत में प्रदूषण घटने की रफ्तार यही रही, तो आने वाले दिनों में 6 साल तक बढ़ जाएगी लोगों की जिंदगी, जानें कैसे?
Air quality life index, Report, Average age, India : वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) की नयी रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ वायु नीतियां जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम कर सकती हैं और जलवायु परिवर्तन में मदद कर सकती हैं. इससे सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में लोगों की औसत आयु पांच साल बढ़ सकती है.
वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) की नयी रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ वायु नीतियां जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम कर सकती हैं और जलवायु परिवर्तन में मदद कर सकती हैं. इससे सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में लोगों के जीवन की औसत आयु पांच साल बढ़ सकती है. साथ ही कहा है कि दक्षिण एशिया पृथ्वी पर सबसे प्रदूषित देशों का घर है. इसमें बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान में वैश्विक आबादी का करीब एक चौथाई हिस्सा रहता है.
वहीं, दुनिया के शीर्ष पांच सबसे प्रदूषित देशों में भी शुमार है. इस क्षेत्र के निवासी, जिनमें दिल्ली और कोलकाता जैसे मेट्रो शहर शामिल हैं, अगर साल 2019 की स्थिति बनी रहती है, तो औसतन नौ साल से अधिक आयु में कमी आ सकती है.
हालांकि, उत्तर प्रदेश के लखनऊ और इलाहाबाद जैसे शहरों में साल 2019 में डब्लूएचओ की गाइडलाइन्स के अनुसार करीब 12 गुना ज्यादा प्रदूषण था. इससे यहां के लोगों की औसत आयु में 11.1 साल की कमी आ सकती है.
वहीं, देश के अन्य राज्यों में वायु गुणवत्ता के लिए डब्लूएचओ द्वारा तय मानकों को हासिल कर लिया जाता है, तो बिहार में 8.8 वर्ष, हरियाणा में 8.4 वर्ष, झारखंड 7.3 वर्ष, पश्चिम बंगाल में 6.7 वर्ष और मध्य प्रदेश में रहनेवाले लोगों की औसत आयु में 5.9 वर्षों की बढ़ोतरी हो सकती है.
चीन एक मॉडल के रूप में साल 2013 में ‘प्रदूषण के खिलाफ युद्ध’ शुरू किया. चीन ने अपने कण प्रदूषण को 29 फीसदी तक कम कर दिया है. चीन की सफलता दर्शाती है कि दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में भी प्रगति संभव है. जबकि, भारत का कोई राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ऐसा नहीं है, जो डब्लूएचओ के मानक पर खरा हो.
सबसे कम लद्दाख में वायु गुणवत्ता का स्तर 12 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था. वहीं, दिल्ली में 109, उत्तर प्रदेश में 107 और बिहार में 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था.
दक्षिण एशिया में, वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक डेटा से पता चलता है कि यदि डब्ल्यूएचओ के निर्देशों के मुताबिक प्रदूषण कम किया जाता है, तो औसत व्यक्ति की उम्र में पांच साल से अधिक 5.9 वर्ष की बढ़ोतरी होगी. उत्तरी भारत के 480 मिलियन लोग ऐसे प्रदूषण स्तर में सांस लेते हैं, जो दुनिया में कहीं और पाये जानेवाले प्रदूषण के स्तर से दस गुना खराब है.
मालूम हो कि भारत में दूषित हवा को साफ करने के लिए साल 2019 में एनसीएपी कार्यक्रम को शुरू किया गया था. इसका मकसद देश के लोगों की औसत आयु में 1.8 वर्ष और दिल्ली में 3.5 वर्ष की वृद्धि करना था.
दिल्ली-कोलकाता जैसे मेट्रो शहरों में तो औसतन आयु नौ से ज्यादा कम हो सकती है. इसका मतलब है कि दिल्लीवासी जितनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, इससे उनके जीवन की औसत आयु 9.7 वर्ष कम हो जाती है.
वहीं, उत्तर प्रदेश में औसत आयु में 9.5 साल की कमी आयेगी. अनुमान के मुताबिक, भारत की करीब 40 फीसदी आबादी जितनी प्रदूषण में सांस लेने को मजबूर है, उतनी दूषित हवा दुनिया के किसी कोने में नहीं है. उत्तर भारत में दूषित हवा में सांस ले रही करीब 51 करोड़ की आबादी का औसत साढ़े आठ साल जीवन प्रदूषण छीन सकता है.