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New Parliament Building Inauguration: प्रधानमंत्री मोदी को अधीनम ने सौंपा सेंगोल, जानें क्या है इसका इतिहास

तमिलनाडु से संबंध रखने वाले और चांदी से निर्मित एवं सोने की परत वाले ऐतिहासिक राजदंड (सेंगोल) को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया जाएगा. अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नये संसद भवन का उद्घाटन करने से एक दिन पहले शनिवार को अपने आवास पर अधीनम (पुजारियों) से मिले और उनका आशीर्वाद लिया. तमिलनाडु से दिल्ली आए अधीनम ने प्रधानमंत्री मोदी से उनके आवास पर मुलाकात की और मंत्रोच्चारण के बीच उन्हें सेंगोल (राजदंड) सौंप दिया.

रविवार को नये संसद भवन का उद्घाटन करेंगे पीएम मोदी, 20 विपक्षी पार्टियों ने किया बहिष्कार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस नये संसद भवन का रविवार को उद्घाटन करेंगे. हालांकि 20 विपक्षी पार्टियों ने इस समारोह का बहिष्कार कर दिया है. दलों का कहना है राष्ट्राध्यक्ष होने के नाते राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नये संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए.

सेंगोल को लोकसभा अध्यक्ष की सीट के पास स्थापित किया जाएगा

तमिलनाडु से संबंध रखने वाले और चांदी से निर्मित एवं सोने की परत वाले ऐतिहासिक राजदंड (सेंगोल) को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया जाएगा. अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया यह रस्मी राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था.

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अंग्रेजों से सत्ता मिलने का प्रतीक है सेंगोल

सेंगोल को अंग्रेजों से सत्ता मिलने का प्रतीक माना जाता है. सेंगोल को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार किया था. गृह मंत्री अमित शाह ने इसके बारे में कहा, सेंगोल को संग्राहलय में रखना ठीक नहीं होगा. आजादी के बाद से सेंगोल को भुला दिया गया था.

चोल साम्राज्य से जुड़ा सेंगोल

सेंगोल चोल साम्राज्य से जुड़ा है. सेंगोल जिसको प्राप्त होता है उससे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन की उम्मीद की जाती है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया, सेंगोल को तमिलनाडु के पुजारियों द्वारा धार्मिक अनुष्ठान किया गया है.

सेंगोल को संस्कृत के संकु से लिया गया

सेंगोल को संस्कृत के संकु शब्द से लिया गया है. जिसका अर्थ शंख होता है. सेंगोल भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था. सेंगोल सोने या फिर चांदी के बने होते हैं. जिसे कीमती पत्थरों से सजाया जाता था. सेंगोल का सबसे पहले इस्तेमाल मौर्य साम्राज्य में किया गया था. उसके बाद चोल साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य में किया गया था. इसका इस्तेमाल आखिरी बार मुगल काल में किया गया था. हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी भारत में अपने अधिकार के प्रतिक के रूप में इसका इस्तेमाल किया गया था.

सेंगोल का अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिकता से

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी. इसके पीछे युगों से जुड़ी हुई एक परंपरा है. इसे तमिल में सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है. 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी. इसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. सेंगोल ने हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी. यह सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था. इसकी जानकारी पीएम मोदी को मिली तो गहन जांच करवाई गई. फिर निर्णय लिया गया कि इसे देश के सामने रखना चाहिए. इसके लिए नए संसद भवन के लोकार्पण के दिन को चुना गया.

तिरुवदुथुरै अधीनम के अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी ने बताया सेंगोल का इतिहास

तिरुवदुथुरै अधीनम के अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी ने कहा, यह तमिलनाडु के लिए गर्व का विषय है कि सेंगोल चोल देश (चोल वंश द्वारा शासित क्षेत्र) में स्थित तिरुववदुथुराई आदिनाम से ले जाया गया है. मठ प्रमुख ने रेखांकित किया कि राजदंड एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन की आवश्यकता को दर्शाता है और तमिल साहित्य में तिरुक्कुरल सहित कई पुस्तकों में सेंगोल का जिक्र है. सेंगोल के धार्मिक महत्व पर परमाचार्य स्वामी ने कहा, सेंगोल चोल साम्राज्य के शासनकाल में अपनाई जाने वाली परंपराओं को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था और इस पर ऋषभ (नंदी) का प्रतीक स्थापित किया गया था. उन्होंने कहा, सेंगोल धर्म का प्रतीक है, नंदी धर्म का प्रतीक है. यह आने वाले हर काल के लिए धर्म की रक्षा का प्रतीक है.

थम्बीरन स्वामी ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल नेहरू को भेंट किया था

1947 में मठ का संचालन अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी के हाथों में था और यह निर्णय लिया गया था आजादी और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में एक सेंगोल का निर्माण किया जाए. मठ का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंचा था, जिसमें सदाई स्वामी उर्फ ​​कुमारस्वामी थम्बीरन, मनिका ओडुवर और नादस्वरम वादक टी एन राजारथिनम पिल्लई शामिल थे. थम्बीरन स्वामी ने लॉर्ड माउंटबैटन को सेंगोल सौंपा था, जिन्होंने इसे वापस उन्हें (थम्बीरन स्वामी को) भेंट कर दिया था. इसके बाद, पारंपरिक संगीत की धुनों के बीच एक शोभायात्रा निकालकर सेंगोल पंडित जवाहरलाल नेहरू के आ‍वास पर ले जाया गया था. यहां थम्बीरन स्वामी ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल नेहरू को भेंट किया था.

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