साल 1961 में बॉलीवुड की एक मूवी ‘काबुलीवाला’ आई थी. इसे कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर की साल 1892 में आई कहानी पर बनाया गया था. फिल्म में बलराज साहनी और उषा किरण ने दमदार एक्टिंग की थी. फिल्म में भारत में रहने वाले एक अफगानी का दर्द दिखाया गया था. वो सूखे मेवे बेचता है और अपनी बेटी की उम्र की एक बच्ची मिनी से दोस्ती कर लेता है. इस फिल्म ने दुनियाभर में वाहवाही बटोरी थी. इस फिल्म का जिक्र इसलिए कि अफगानिस्तान के मौजूदा हालात में भारत में रह रहे कई अफगानिस्तानी नागरिकों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. कोलकाता में भी कई अफगानिस्तानी नागरिक रहते हैं. कई छोटे-मोटे काम करके गुजारा कर रहे हैं. कुछ ने फेरीवाले का काम चुना है. कई ‘काबुलीवाला’ फिल्म के कैरेक्टर को रियल लाइफ में जी रहे हैं.
Also Read: ‘शहीदों के द्वार मोदी सरकार’, क्या BJP के ऐलान के बाद बंगाल में ममता की बढ़ेंगी मुश्किलें?
आज अफगानिस्तान पर आतंकी संगठन तालिबान का कब्जा हो गया है. राजधानी काबुल पर आतंकियों के नियंत्रण के बाद वहां से लोगों को बाहर निकाला जा रहा है. कोलकाता में रहने वाले काबुलीवाले (काबुल के लोग) अफगानिस्तान में रहने वाले अपने परिवार के लोगों के लिए चिंतित हैं. कोलकाता में रहने वाले अफगानिस्तानियों को काबुलीवाला कहा जाता है. ये लोग अपने देश से लाए गए सूखे मेवे, कालीन और इत्र को घर-घर बेचते हैं. ये पैसे उधार देने का भी काम करते हैं. इन्हीं कामों से इनका गुजर-बसर होता है. कई बीच-बीच में अपने देश भी जाते हैं.
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक कोलकाता में कई सालों से 58 वर्षीय उमर मसूद उधार पर पैसे देने का काम कर रहे हैं. उन्होंने भाषा से बात करते हुए बताया कि पिछले दो सप्ताह से वो कुंदूज में रह रहे अपने परिवार और दोस्तों से संपर्क नहीं कर पाए हैं. जुलाई में उन्होंने आखिरी बार छोटे भाई और परिवार से बात की. उन्हें मई के बाद से अफगानिस्तान छोड़कर भारत या किसी दूसरे देश में जाने की सलाह देते रहे. अब उमर मसूद को उनकी जानकारी नहीं मिल रही है.
अफगानिस्तान के हालात दिन गुजरने के साथ बिगड़ते जा रहे हैं. साल 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाली सेनाओं ने तालिबान को अफगानिस्तान में सत्ता से हटा दिया गया था. अब, तालिबान के लड़ाकों ने फिर से काबुल सहित प्रमुख शहरों पर कब्जे के बाद अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है. अफगानिस्तान की मौजूदा अशरफ गनी सरकार गिर गई है. राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए हैं. अफगानिस्तान में दो दशक के संघर्ष में हजारों लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं. एक बार फिर बड़ी संख्या में लोगों को पलायन करना पड़ा है.
पिछले साल काबुल से कोलकाता आए मोहम्मद खान (49) ने भाषा को बताया कि वहां हालात एक बाहर फिर बदतर हो गए हैं. 90 के दशक में जब तालिबान ने पहली बार अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया था, तो उन्होंने देश छोड़ दिया था. लेकिन, 2017 में जब देश में सबकुछ ठीक लगा तो वो वापस लौट गए थे. वहां दुकान भी खोली थी. इसी बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने का फैसला किया. इसके बाद अफगानिस्तान में हालात बिगड़ने लगे थे.
मोहम्द खान का कहना है उनके पास पत्नी-बच्चों को लेकर कोलकाता लौटने के अलावा अन्य रास्ता नहीं बचा था. वो काबुल के बाहरी इलाके में रहने वाले अपने परिवार से कोई खबर नहीं मिलने के कारण रात को सो नहीं पा रहे हैं. 90 के दशक में तालिबान ने विरोध करने पर उनके परिवार के कई सदस्यों को जान से मार दिया. अब, परिवार के भविष्य के लिए मोहम्मद खान चिंतित हैं. उमर फारूकी (60) कहते हैं कि हम भारतीय अधिकारियों से अफगानिस्तान के शरणार्थियों की मदद का अनुरोध करेंगे. उनके पास कहीं और जाने की कोई जगह नहीं बची है.