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African Swine Fever: केरल में ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ का मामला आया सामने, बरेली में मिला था पहला केस

केरल में बीते दिनों जहां मंकीपॉक्स का मामला सामने आया था. वहीं अब वायनाड जिले के मानन्थावाद्य स्थित दो पशुपालन केंद्रों में 'अफ्रीकन स्वाइन फीवर' के मामले सामने आए हैं. बता दें कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर बेहद संक्रामक और घातक बीमारी है.

केरल के वायनाड जिले के मानन्थावाद्य स्थित दो पशुपालन केंद्रों में ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ (ASF) के मामले सामने आए हैं. अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. भोपाल स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान में नमूनों की जांच के बाद जिले के दो पशुपालन केंद्र के सूअरों में इस बीमारी की पुष्टि हुई.

अफ्रीकन स्वाइन फीवर का कहर

पशुपालन विभाग के एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया कि एक केंद्र में कई सूअरों की मौत के बाद नमूने जांच के लिए भेजे गए थे. अधिकारी ने कहा, अब उसके परिणाम में इस बुखार की पुष्टि हुई है. दूसरे केंद्र में 300 सूअरों को मारने के निर्देश दिए गए हैं.

अफ्रीकन स्वाइन फीवर बेहद घातक बीमारी

विभाग ने कहा कि इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. राज्य ने इस महीने की शुरुआत में केंद्र सरकार के आगाह करने के बाद जैव सुरक्षा उपायों को कड़ा कर दिया था. केंद्र सरकार ने बताया था बिहार और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ के मामले सामने आए हैं. आपको बता दें कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर बेहद संक्रामक और घातक बीमारी है.

बरेली में आया था पहला मामला

आपको बता दें कि बीते दिनों बरेली जिले में अफ्रीकन स्वाइन फीवर का पहला मामला सामने आया था. इसके बाद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) ने मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को पत्र भेजकर अलर्ट जारी करने के लिए कहा है. आईवीआरआई के संयुक्त निदेशक डॉक्टर के. पी. सिंह ने बृहस्पतिवार को बताया कि देश के मिजोरम, त्रिपुरा और असम के बाद अब बरेली में भी अफ्रीकन स्वाइन फ्लू का मामला सामने आया है. उन्होंने बताया कि कुछ दिन पूर्व बरेली जिले के नवाबगंज तहसील के भड़सर डांडिया गांव निवासी पशु पालक अनिल कुमार के सुअर को तेज बुखार आया था और कुछ दिन बाद इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी थी.

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1920 में अफ्रीका के पशुओं में दिखा था ये वायरस

आईवीआरआई की तरफ से सुअर का मांस खाने पर भी रोक लगाने की बात कही है. इस संक्रमण से इंसानों को खतरा नहीं है. मगर,पशुपालक या कर्मचारी सुअर के संपर्क में आते हैं, तो दूसरे पशुओं में फैल सकता है. यह वायरस पहली बार 1920 में अफ्रीका के पशुओं में दिखाई पड़ा था.

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