नयी दिल्ली : नये कृषि कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों की 72वें गणतंत्र दिवस पर आयोजित ट्रैक्टर रैली के बीच लाल किले पर ‘धार्मिक ध्वज’ फहराने का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है. किसान संगठनों ने भी लालकिले पर धार्मिक ध्वज ‘निशान साहिब’ फहराये जाने से किनारा कर लिया है. आइए जानते हैं क्या है धार्मिक ध्वज ‘निशान साहिब’?
‘निशान साहिब’ ध्वज सिख धर्मावलंबियों का पवित्र ध्वज है. यह खालसा पंथ का परंपरागत चिह्न माना जाता है. यह पवित्र ध्वज को गुरुद्वारे के शीर्ष या ऊंचाई पर फहराया जाता है.
कपास या रेशम के कपड़े के बने इस त्रिकोणीय ध्वज के सिरे पर रेशम की लटकन होती है. इस ध्वज के केंद्र में सिख चिह्न ‘खंडा’ बना होता है. ध्वज दो प्रकार के होते हैं. पहला केसरिया रंग का ध्वज होता है, जिस पर नीले रंग का खंडा होता है. जबकि, दूसरा नीले रंग का ध्वज होता है, जिस पर केसरिया रंग का खंडा होता है.
सिख समाज में निशान साहिब को पवित्र माना जाता है. इसमें सिखों की निशानी मौजूद होती है. निशान साहिब में खंडा, चक्र और कृपाण होता है. इसे काफी सम्मान से देखा और रखा जाता है. ध्वज के पुराने होने या रंग खराब होने पर तुरंत बदल कर नया ध्वज लगा दिया जाता है.
सबसे पहले साल 1709 में गुरु हरगोबिंद सिंह ने अकालतख्त पर केसरिया रंग का ‘निशान साहिब’ फहराया था. उसके बाद से केसरिया रंग का ही ‘निशान साहिब’ आमतौर पर हर जगह देखने को मिलता है.
वहीं, नीले रंग का ‘निशान साहिब’ ध्वज कई जगह देखने को मिलता है. ‘निहंग’ द्वारा प्रबंधित किये जाने के बाद ‘निशान साहिब’ का ध्वज नीला कर दिया जाता है. कई गुरुद्वारों में भी नीला ‘निशान साहिब’ देखने को मिलता है.
‘निशान साहिब’ ध्वज का डंडा भी विशेष प्रकार का होता है. ध्वजडंड में भी ऊपर दोधारी खंडा होता है. बैसाखी में इस ध्वज को नीचे उतार कर दूध-जल से पवित्र किया जाता है.
जानकारी के मुताबिक, निहंग उन्हें कहते हैं, जो दसों सिख गुरुओं के आदेशों के पूर्ण रूप से पालन के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. ये गुरु महाराजों की रचना गुरु ग्रंथ साहिब के प्रहरी होते हैं. सिख धर्म पर दुर्भाग्यपूर्ण प्रहार के समय अपने प्राणों की परवाह किये बगैर ‘निहंग’ आखिरी सांस तक ‘सिख’ और ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ की रक्षा करते हैं.
माना जाता है कि ‘निशान साहिब’ का रंग पहले लाल होता था. बाद में इसका रंग सफेद कर दिया गया. साल 1709 में गुरु हरगोबिंद सिंह ने अकालतख्त पर सबसे पहले केसरी रंग का ‘निशान साहिब’ फहराया था. माना जाता है कि उसके बाद से ‘निशान साहिब’ का रंग केसरिया हो गया.