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निर्भया कांड के बाद मनमोहन और मोदी सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या किए, जानें कौन से नये कानून बने

16 December 2012 को निर्भया के साथ हुए गैंगरेप और मर्डर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. ऐसे में तत्‍कालीन मनमोहन सिंह कैबिनेट ने महिलाओं के साथ बलात्कार और अन्य अपराधों के लिए कड़े दंड का प्रावधान करने वाले विधेयक को मार्च 2013 में मंजूरी दी थी.

By AmleshNandan Sinha | March 19, 2020 10:25 PM
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नयी दिल्‍ली : 16 December 2012 को निर्भया के साथ हुए गैंगरेप और मर्डर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. ऐसे में तत्‍कालीन मनमोहन सिंह कैबिनेट ने महिलाओं के साथ बलात्कार और अन्य अपराधों के लिए कड़े दंड का प्रावधान करने वाले विधेयक को मार्च 2013 में मंजूरी दी थी. विधेयक में एसिड हमला, पीछा करने, घूरने और छिपकर ताकझांक करने को महिलाओं के प्रति आपराधिक कृत्य माना गया.

मनमोहन सिंह सरकार का एंटी रेप बिल

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में विधेयक को मंजूरी दी गयी. बाद में सरकार ने दोनों सदनों से एंटी रेप बिल पास करवाया. अध्यादेश में जहां इस मामले में जेंडर न्यूट्रल किये जाने की बात कही गयी थी, वहीं इसे संसद ने जेंडर स्पेसिफिक यानी महिलाओं के खिलाफ अपराध माना है. अध्यादेश में इसे सेक्शुअल असॉल्ट कहा गया था, बिल में इसे रेप कहा गया है. सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 कर दी गयी है. अध्यादेश से पहले के कानूनी प्रावधान में यह उम्र 16 साल थी.

अध्यादेश में 16 साल से कम उम्र की पत्नी से जबरन संबंध रेप माना गया. बिल में इसे 15 साल कर दिया गया है. छेड़छाड़ में सजा दो साल से बढ़ाकर पांच साल कर दी गयी है. जस्टिस वर्मा कमिटी ने जहां रेप के बाद पीड़िता के कोमा में चले जाने या फिर मरने की स्थिति में उम्रकैद (मरते दम तक) का प्रावधान किया था. वहीं बिल में इसके लिए अधिकतम डेथ पेनल्टी की बात कही गयी.

सेक्सुअल हैरसमेंट के लिए तीन साल तक कैद का प्रावधान किया गया. स्टॉकिंग में अधिकतम पांच साल कैद की सजा का प्रावधान किया गया. वॉयरिज्म में तीन साल तक कैद का प्रावधान किया गया है और अगर यह दोबारा किया जायेगा तो सजा सात साल की हो जायेगी. पहली बार में जमानती अपराध माना गया है, लेकिन दूसरी बार ऐसे अपराध किये जाने को गैर जमानती करार दिया गया.

किसी महिला को सार्वजनिक स्‍थल पर कपड़े उतारने के लिए मजबूर किये जाने को अलग अपराध बनाते हुए सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है. ऐसिड अटैक के मामले में अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया. अध्यादेश से पहले ऐसिड अटैक के मामले के लिए अलग कानूनी प्रावधान नहीं था.

रेप पर नरेंद्र मोदी सरकार ने कानून में किया संशोधन

जुलाई 2018 में आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 लोकसभा से पारित किया गया. इस कानून में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के दोषियों को मौत की सजा का प्रावधान है. साथ ही 16 साल से छोटी बच्चियों से रेप का दोषी पाये जाने पर कम से कम 20 साल की कठोर सजा का प्रावधान है, जिसे उम्रकैद तक भी बढ़ाया जा सकता है.

यह विधेयक 21 अप्रैल को लागू दंड विधि संशोधन अध्यादेश 2018 की जगह ले चुका है. विधेयक के अनुसार बलात्कार की घटना में पीड़िता को तुरंत मुफ्त में प्राथमिक उपचार मुहैया कराया जायेगा और अस्पताल तत्काल पुलिस को सूचित भी करेगा. नये कानून के तहत जांच पड़ताल में कोई भी पीड़िता से उसके आचरण के बारे में सवाल नहीं पूछ सकता है. IPC की शब्दावली के तहत बिल में 16 साल से कम उम्र के लिए भी बच्ची के स्थान पर महिला शब्द का प्रयोग किया गया है.

अप्रैल, 2018 में मोदी कैबिनेट ने पॉक्‍सो एक्‍ट में संशोधन किया था. जिसके तहत 16 और 12 साल से कम उम्र की बच्‍चियों के साथ बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा का प्रावधान किया गया था. पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद सरकार अध्‍यादेश लायी है, जो आज (30 जुलाई) लोकसभा से पारित हो गया है. अब यह विधेयक राज्यसभा भेजा जायेगा.

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