कोरोना महामारी के कारण अन्य बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों को पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से सही तरीके से इलाज नहीं मिल पा रहा है. ऐसी ही एक बीमारी है एनीमिया. भारत में 51 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. भारत उन देशों की सूची में शीर्ष पर है, जहां सबसे अधिक महिलाएं और बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. एनीमिया से निपटने के लिए, भारत सरकार ने 2018 में एनीमिया मुक्त भारत की शुरूआत की है, जिसका उद्देश्य एनीमिया को खत्म करने के लिए नयी रणनीतियों को बढ़ावा देना है. लेकिन कोरोना महामारी के कारण इन अभियानों पर असर पड़ा है.
एनीमिया के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के लिए जैसे कि ग्रामीण भारत में एनीमिया के आंकड़ों की सटीकता की चुनौती और प्वाइंट ऑफ केयर (पीओसी) तथा सटीक डेटा संग्रह एनीमिया के विरूद्ध युद्ध जीतने में कैसे सहायता कर सकते हैं. इन्हीं विषयों पर चर्चा करने के लिए हील थाय संवाद श्रृंखला के 18 वें एपिसोड के तहत ई-शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका शीर्षक एनीमिया की पहचान और निदान को शक्तिशाली बनाना था.
बिहार-झारखंड जैसे राज्यों में स्थिति और भी खराब है . झारखंड में तो महिलाओं की 70 प्रतिशत आबादी एनीमिया से पीड़ित है. 6-59 महीने के 70 प्रतिशत बच्चे भी एनीमियाग्रस्त हैं. बिहार में अभियान की शुरुआत में पाया गया कि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं. इनके उन्मूलन के लिए अभियान चला लेकिन उसकी गति धीमी है. ई-शिखर सम्मेलन में डॉ. जे.एल.मीणा, संयुक्त निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने कहा, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य अभियान एनीमिया को रोकने के लिए तकनीक सक्षम उपकरणों और विशेषरूप से प्वाइंट ऑफ केयर डिवाइस पर अधिक केंद्रित है.
हम परीक्षण और निदान में सभी आक्रामक तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं. चूंकि भारत डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रहा है, इसलिए पीओसी कार्यक्रम उपयोगी होगा. एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए चिकित्सा कर्मचारियों की क्षमता निर्माण और जनता के बीच जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है. एनीमिया के विभिन्न पहलुओं पर बोलते हुए, डॉ. अजय खेड़ा (पूर्व आयुक्त, मातृ एंव शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम, स्वास्थ्य मंत्रालय) और वर्तमान में एनजेंडरहेल्थ, इंडिया में देश के प्रतिनिधि ने कहा, एनीमिया एक बहुत बड़ी समस्या है, क्योंकि भारत में हर दूसरी महिला और बच्चा एनीमिया के शिकार हैं.
एनीमिया एक जीवनचक्र की समस्या है, क्योंकि एक एनीमिया से पीड़ित मां, एनीमिया से ग्रस्त बच्चे को जन्म देती है और फिर से एनीमिया की शिकार लड़की, एनीमिया से पीड़ित बच्चे को जन्म देती है और यह चक्र चलता रहता है. राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के अनुसार, 30-50 प्रतिशत एनीमिया के मामले आयरन की कमी के कारण होते हैं. देश की पूरी आबादी के लिए आयरन-फॉलिक एसिड के सप्लीमेंट्स की शुरूआत करने की आवश्यकता है. डिजिटल टेस्टिंग भी महत्वपूर्ण है.
ई-शिखर सम्मेलन – हील थाय संवाद श्रृंखला के 18 वें एपिसोड के दौरान पोषण के महत्व और आयरन की कमी पर बोलते हुए, डॉ. हेमलता, निदेशक, “राष्ट्रीय पोषण संस्थान, आईसीएमआर ने कहा, “एनएफएचएस के फेज़-1 की रिपोर्ट में यह तथ्य उभरकर आया है कि 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं और बच्चे एनीमिया के शिकार हैं.
व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (सीएनएनएस) के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में केरल, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड जैसे अन्य राज्यों की तुलना में एनीमिया के मामले अधिक हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आयरन की कमी कम है, लेकिन एनीमिया की दर अधिक है और शहरी क्षेत्रों में आयरन की कमी अधिक है और एनीमिया के मामले कम हैं. ” ई-शिखर सम्मेलन में हील हेल्थ के संस्थापक और सीईओ, डॉ. स्वदीप श्रीवास्तव ने कहा, देश में एनीमिया के खिलाफ जंग लड़ने के लिए सभी हितधारकों को एकसाथ आने की जरूरत है. भारत सरकार के एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) के अभियान को फिर से जीवंत करने के लिए एनीमिया का पता लगाने और निदान के मुद्दों पर चर्चा करने की सख्त आवश्यकता जरूरत है.
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