प्रधानमंत्री मोदी डिग्री विवाद मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को झटका लगा है. दरअसल, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अरविंद केजरीवाल की याचिका खारिज कर दी है. आपको बता दें कि हाई कोर्ट ने गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा दायर मानहानि मामले पर रोक लगाने के अरविंद केजरीवाल के अनुरोध को खारिज कर दिया था.
Supreme Court refuses to grant relief to Delhi’s Chief Minister Arvind Kejriwal in the criminal defamation case filed by the Gujarat University over his comments in connection with the Prime Minister’s degree.
Supreme Court notes that Kejriwal’s plea to stay the trial is pending… pic.twitter.com/oPUFC3pR2J
— ANI (@ANI) August 25, 2023
यहां चर्चा कर दें कि गुजरात यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार पीयूष पटेल ने अरविंद केजरीवाल और आप नेता संजय सिंह के खिलाफ मानहानि केस किया था. आरटीआई एक्ट के तहत पीएम मोदी की डिग्री को लेकर मांगी गयी सूचना उपलब्ध कराने के मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश पर गुजरात हाई कोर्ट ने रोक लगाने का काम किया था. इसके बाद कथित तौर पर दोनों नेताओं के द्वारा गुजरात यूनिवर्सिटी पर कुछ टिप्पणियां की गयी थी.
मामले में अबतक का घटनाक्रम
-इससे पहले गुजरात की मेट्रोपोलिटन अदालत ने अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह को अपने कथित अपमानजक बयानों को लेकर तलब किया था. मामले की सुनवाई 31 अगस्त को होगी.
-‘आप’ के दोनों नेताओं ने समन को सेशंस कोर्ट में चुनौती दी थी.
-सेशंस कोर्ट ने 7 अगस्त को अंतरिम रोक लगाने याचिका खारिज कर दी. इसके बाद वे हाई कोर्ट गए थे. सेशन कोर्ट में पुनर्विचार याचिका पर अब 16 सितंबर को सुनवाई होगी.
-सिर्फ अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के 11 अगस्त के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी जिसपर आज सुनवाई हुई.
शिकायतकर्ता ने क्या कहा
पटेल द्वारा दायर शिकायत के अनुसार, दोनों नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस और ट्विटर हैंडल पर पीएम मोदी की डिग्री को लेकर विश्वविद्यालय को निशाना बनाते हुए ‘अपमानजनक’ बयान दिये. शिकायतकर्ता ने कहा कि गुजरात विश्वविद्यालय को निशाना बनाने वाली उनकी टिप्पणियां अपमानजनक थीं और विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची, जिसने जनता के बीच अपना एक रूतबा कायम किया है. पटेल ने अपनी शिकायत में कहा कि उनके बयान व्यंग्यात्मक थे और जानबूझकर विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए दिये गये थे.