Assembly Election: हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव परिणाम चौकाने वाले रहे. सबसे बड़ा उलटफेर हरियाणा में देखा गया. तमाम एग्जिट पोल और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनना तय है. चुनाव के दौरान कांग्रेस ने आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान चलाया. किसान, बेरोजगारी, पहलवान, अग्निवीर, संविधान बचाने के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया. वहीं भाजपा ने पिछले 10 साल में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किए काम के नाम पर वोट मांगा. चुनाव के आखिरी दौर में राहुल और प्रियंका गांधी ने रोड शो कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की. लेकिन चुनाव परिणाम ने सबको चौंका दिया और राज्य में पहली बार कोई दल लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रहा.
भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाकर सभी अनुमानों को एक बार फिर ग़लत साबित कर दिया. दरअसल भाजपा ने बेहद सधी हुई रणनीति के तहत हरियाणा में चुनाव अभियान चलाया. पार्टी ने आक्रामक चुनाव अभियान की बजाय इस बार साइलेंट तरीके से जमीन पर काम किया. खासकर दलितों पर विशेष ध्यान दिया. पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं और नाराज नेताओं को साधा. कांग्रेस के जाट पॉलिटिक्स से इतर भाजपा ने सभी वर्ग को साधने पर जोर दिया. इसके अलावा विपक्ष के लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के विपक्ष के एजेंडे को दुष्प्रचार करार दिया और पिछले 10 साल में पिछड़े और दलित वर्ग के लिए किए गए काम को प्रचारित किया.
भाजपा के लिए क्यों अहम है यह जीत
लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला विधान चुनाव था. लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पायी. भले ही केंद्र की सत्ता पर तीसरी बार काबिज हो गयी, लेकिन सरकार चलाने के लिए सहयोगी दलों का समर्थन जरूरी है. अगर हरियाणा में भाजपा हारती तो केंद्र सरकार पर सहयोगी दलों का दबाव भी बढ़ सकता था. इसके अलावा झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव में विपक्ष की स्थिति मजबूत हो जाती.
लेकिन हरियाणा की जीत से झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले चुनाव में भाजपा जोश के साथ मैदान में उतरेगी और कार्यकर्ताओं में भी जोश बढ़ेगा. पार्टी के खिलाफ संविधान बदलने के विपक्ष का नैरेटिव भी कमजोर होगा. इस जीत से भाजपा एक बार फिर विपक्ष पर हावी होते दिखेगी. वहीं इस हार के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर विपक्ष में सवाल उठेंगे और झारखंड, महाराष्ट्र में गठबंधन में पार्टी की मोल-भाव की क्षमता कम होगी. लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी में आये उत्साह में भी कमी आयेगी.