Atal bihari vajpayee death anniversary, speech, quotes, poems, Video : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज दूसरी पुण्यतिथि है. साल 2018 में एक लंबी बीमारी से जूझने के बाद अटल जी ने दिल्ली एम्स अस्पताल में अपनी आखिरी सांस ली थी. उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार देश का नेतृत्व किया.पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि अर्पित की है. . अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘प्यारे अटल जी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि. भारत हमेशा उनकी उत्कृष्ट सेवा और हमारे राष्ट्र की प्रगति के प्रयासों को याद रखेगा. इसके साथ ही उन्होंने एक वीडियो भी शेयर किया.
Tributes to beloved Atal Ji on his Punya Tithi. India will always remember his outstanding service and efforts towards our nation’s progress. pic.twitter.com/ZF0H3vEPVd
— Narendra Modi (@narendramodi) August 16, 2020
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषणों से सबको हिलाकर रख दिया. वो राजनेता होने के साथ शानदार वक्ता और कवि थे. कवि हृदय लेकिन इरादे ‘अटल’ थे. 1999 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और परमाणु परीक्षण इसी का उदाहरण है.उनकी कविताएं देश प्रेम के साथ साथ जिंदगी को प्रेरणा देने वाली होती हैं. अपनी पार्टी का नेता हो या विरोधी पार्टी का, सबको साथ लेकर चलने की खूबी उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करती थी. यही कारण था कि उन्हें अजातशत्रु भी कहा जाता था.
अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के धनी थे. भाजपा में एक उदार चेहरे के रूप में उनकी पहचान थी. वे पहली बार साल 1996 में 16 मई से 1 जून तक, 19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक और फिर 13 अक्तूबर 1999 से 22 मई 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं. वह लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं. उनके विचार देश के युवाओं को आज भी प्रेरित करते हैं.
एक बार अटल बिहारी वाजपेयी पर विपक्ष ने आरोप लगाया था कि उनको सत्ता लोभी हैं. इस पर अटल जी ने लोकसभा में खुलकर बात की और अपने भाषण से सभी को हिलाकर रख दिया. उन्होंने एक श्लोक पढ़ते हुए कहा था- भगवान राम ने कहा था कि ‘मैं मरने से नहीं डरता, डरता हूं तो सिर्फ बदनामी से डरता हूं…’ जिसके बाद विरोधियों ने कभी उन पर ऐसा आरोप नहीं लगाया. उन्होंने ये भाषण 28 मई 1996 में विश्वास प्रस्ताव के दौरान दिया था.
अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को सुनने के लिए विपक्ष भी शांत बैठा करता था. उनके भाषण हमेशा ही शानदार होते थे. लोग तो यहां तक कहते हैं कि अब उन सा भाषण देने वाला कोई नेता रहा ही नहीं. यूट्यूब पर उनके ऐसे कई भाषण हैं जिसे आज भी रोजाना देखा जाता है.
भारत के दिवंगत भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद के सत्र में कहा था कि – “सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए. चूंकि देश सर्वोपरि है और एक राजनेता को अव्व्ल अपने देश के लिए पूरी निष्ठा से काम करना चाहिए. अटल बिहारी वाजपेयी एक नेता तो थे ही साथ ही कविताएं भी लिखा करते थे. उन्होंने देश के लिए भी कविताएं लिखीं. उन्होंने अपने जीवन काल में ढेरों कविताएं लिखीं. संसद से लेकर कई मंचो पर कविता का पाठ भी किया. सदन में विरोधियों के कविता के जरिए आक्रमाक जवाब देने की उनकी कला के सभी कायल रहे हैं.
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छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता.
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मेरे पास ना दादा की दौलत है और ना बाप की. मेरे पास मेरी मां का आशीर्वाद है.
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लोकतंत्र एक ऐसी जगह है जहां दो मूर्ख मिलकर एक ताकतवर इंसान को हरा देते हैं.
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मैं हमेशा से ही वादे लेकर नहीं आया, इरादे लेकर आया हूं.
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जीत और हार जीवन का एक हिस्सा है, जिसे समानता के साथ देखा जाना चाहिए.
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अगर भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं है, तो भारत बिल्कुल भारत नहीं है.
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होने, ना होने का क्रम, इसी तरह चलता रहेगा. हम हैं, हम रहेंगे, ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा.
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आप मित्र बदल सकते हैं पर पड़ोसी नहीं.”
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क्यों मैं क्षण-क्षण में जियुं? कण-कण में बिखरे सौंदर्य को पियूं?”
अटल जी अपने छात्र जीवन के दौरान पहली बार राजनीति में तब आए जब उन्होंने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया. वह राजनीति विज्ञान और विधि के छात्र थे और कॉलेज के दिनों में ही उनकी रुचि विदेशी मामलों के प्रति बढ़ी. 1951 में भारतीय जन संघ में शामिल होने के बाद उन्होंने पत्रकारिता छोड़ दी. वाजपेयी जी राजनीति के क्षेत्र में चार दशकों तक सक्रिय रहे. वह लोकसभा में नौ बार और राज्यसभा में दो बार चुने गए जो कि अपने आप में ही एक कीर्तिमान है. वाजपेयी 1980 में गठित भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे.
1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने. 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया. वे 1996 में बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे. इसके अलावा विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई.
विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे. 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी. किसी सरकार का विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया में आश्चर्य से देखा गया था.
Posted By: Utpal kant