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Atal Bihari Vajpayee: 65 सालों तक ‘अटल’ रही वाजपेयी-आडवाणी की दोस्‍ती, कुछ इस तरह रहा राजनीत‍ि में सफर

Atal Bihari Vajpayee: स्‍वर्गीय अटल ब‍िहारी वाजपेयी और लालकृष्‍ण आडवाणी के बीच की दोस्‍ती 65 सालों तक अटल रही. अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात लालकृष्ण आडवाणी से कैसे हुई, यह कहानी भी बहुत रोचक है.

Atal Bihari Vajpayee: पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के साथ ही भारतीय राजनीति में नंबर वन कही जाने वाली वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी टूट गई. स्‍वर्गीय अटल ब‍िहारी वाजपेयी और लालकृष्‍ण आडवाणी के बीच की दोस्‍ती 65 सालों तक अटल रही. यह जोड़ी अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक संन्यास और 2009 में अस्वस्थ होने के बाद से अप्रासंगिक जरूर हो गई थी, लेकिन इसे भारतीय राजनीति में याद किया जाता रहेगा.

जानिए वाजपेयी से पहली बार कहां मिले थे आडवाणी

अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात लालकृष्ण आडवाणी से कैसे हुई, यह कहानी भी बहुत रोचक है. बताया जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी एक बार सहयोगी के तौर पर पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ ट्रेन से मुंबई जा रहे थे. दरअसल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर के मुद्दे पर पूरे देश का दौरा कर रहे थे. वहीं, लालकृष्ण आडवाणी कोटा में प्रचारक थे. उनको पता लगा कि ट्रेन यहां से गुजरने वाली हैं, तो वह मिलने पहुंच गए. वहीं पर मुखर्जी ने दोनों की मुलाकात करवाई थी.

बीजेपी की स्थापना के पहले राजनीति में आ चुके थे दोनों दिग्गज

बीजेपी की स्थापना के काफी पहले दोनों नेता राजनीति में आ चुके थे और दोनों ने ही संघ के प्रचारक के तौर पर अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी. अटल जी की तरह आडवाणी भी पत्रकारिता से जुड़े थे. अटल जी अपने भाषण के दम पर राजनीति में बहुत ही तेजी से जगह बना रहे थे. वहीं, आडवाणी राजस्थान के कोटा में संघ के प्रचारक के तौर पर काम रहे थे. जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणशैली से काफी प्रभावित थे और चाहते थे कि वे किसी तरह संसद पहुंच जाएं, ताकि उनके भाषणों को पूरे देश की जनता सुन पाये.

चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे, तो गहरी हुई दोस्‍ती

अटल ब‍िहारी पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे, तो वहां एक बार फिर दोनों की मुलाकात हुई. द‍िल्‍ली में दोनों एक दूसरे के नजदीक आए और फ‍िर अच्‍छे दोस्‍त बने. पार्टी के ल‍िए दोनों साथ म‍िलकर काम करते थे और खाली वक्‍त में घूमने भी साथ जाते थे. उस समय दोस्‍ती गहरी होनी शुरू हो गई थी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था क‍ि उनके पास अपना दुख बयां करने के लिए शब्द नहीं है. उन्होंने कहा था क‍ि मेरे लिए अटलजी एक वरिष्ठ साथी से कहीं ज्यादा थे. असल में वह 65 सालों तक मेरे सबसे करीबी मित्र रहे.

इस जोड़ी ने देश में पहली बार बनाई थी गैर-कांग्रेसी सरकार

भारतीय राजनीति में कभी अटल-आडवाणी की जोड़ी की तूती बोलती थी और कांग्रेस के खिलाफ राजनीति के सबसे बड़े केंद्र बन चुकी इस जोड़ी ने देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई थी और जिसने पूरे 5 साल शासन किया था. आपातकाल के दिनों में दोनों एक साथ जेल में रहे. दोनों ने जनसंघ का विलय जनता पार्टी में करने का फैसला किया, तो उनकी इस रणनीति ने कांग्रेस की कमर तोड़ दी थी. 1977 में जब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया और आडवाणी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया.

पर्दे के पीछे रहकर अटल जी ने दिया अपने दोस्‍त का साथ

दोनों ने जनता पार्टी से अलग होकर 1980 में बीजेपी बनाई. अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष बने. 1984 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महज 2 सीटें मिली थीं. 1986 में पार्टी ने अपने सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को अध्यक्ष पद से हटा दिया. उसके बाद आडवाणी का युग शुरू हुआ. इसमें अटल ब‍िहारी वाजपेयी ने पर्दे के पीछे रहकर अपने दोस्‍त का साथ द‍िया.

वाजपेयी से पहले आडवाणी को ही माना जाता था पीएम चेहरा

बीजेपी में एक समय अटल बिहारी वाजपेयी से पहले लालकृष्ण आडवाणी को ही पीएम चेहरा माना जाता था और वो ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. दरअसल, बीजेपी को संगठित करने में भी आडवाणी की अहम भूमिका है. लेकिन, बीजेपी अध्यक्ष रहने के दौरान मुंबई के अधिवेशन में लालकृष्ण आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर सबको चौंका दिया था. कहा जाता है कि उस समय वाजपेयी ने नाराज होकर आडवाणी से यह भी कहा था कि एक बार मुझसे पूछ तो लेते. इस पर आडवाणी ने उनको जवाब दिया था कि पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते यह उनको अधिकार है.

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