अटल बिहारी वाजपेयी नाम नहीं एक पहचान हैं. जो प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ महान कवि, मेधावी छात्र और बहुत अच्छे राजनीतिज्ञ भी थे. उनकी कविताएं आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है. गीत नया गाता हूं, मौत से ठन गई और कदम मिलाकर चलना होगा.. ऐसी कविताएं है, जो घोर निराशा में भी उम्मीद की आशा जगा देती हैं. उन्होंने एक से बढ़कर एक ऐसी कविताएं रची हैं, जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. 25 दिसंबर 1924, जब पूरी दुनिया क्रिसमस का त्योहार मना रही थी, उस समय मध्य प्रदेश के ग्वालियर के एक घर में एक बच्चे की किलकारी गूंज रही थी. उस वक्त शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही बच्चा बड़ा होकर एक दिन देश के सबसे कामयाब प्रधानमंत्रियों में से एक होगा, जिसे अपने उत्कृष्ट कामों के लिए भारत रत्न से भी नवाजा जाएगा. विदेशी में भी भारत की नई पहचान गढ़ेगा.
कहते हैं, ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं.’ अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी कुछ ऐसा ही था. बचपन से ही अटल कुशाग्र बुद्धि के थे. पढ़ने-लिखने में वो काफी मेधावी छात्र थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर से हुई थी. स्नातक तक की पढ़ाई उन्होंने ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) से की थी. वाजपेयी हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के अच्छे जानकार थे. उन्होंने कानपुर स्थित डीएवी कॉलेज पॉलिटिकल साइंस में मास्टर की डिग्री हासिल की थी. अपने पिता की तरह उन्हें भी कविताएं लिखने का शौक था. पॉलिटिकल साइंस पढ़ने के दौरान ही वाजपेयी की दिलचस्पी राजनीति में हुई थी. संघ से भी उनके काफी करीबी रिश्ते थे. वे 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लखनऊ से लोकसभा के लिए चुने गए थे. बीजेपी के सबसे पहले वाजपेयी ही ऐसे नेता है, जिन्होंने बतौर गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के तौर पर साल पांच साल के कार्यकाल को पूरा किया हो. उन्होंने मिसाल कायम करते हुए 4 अक्टूबर 1977 को संयुक्त राष्ट्रसभा में हिंदी में भाषण देकर इतिहास रच दिया था. उनके भाषण से पूरा यूएन तालियों से गूंज उठा था.