Babri masjid demolition verdict : बाबरी मस्जिद निर्माण से विध्वंस तक, जानें 492 वर्षों का पूरा घटनाक्रम

Babri masjid demolition verdict: बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आज सीबीआई (CBI special Court) की स्पेशल कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया. सीबीआई कोर्ट के जज सुरेंद्र यादव ने यह फैसला सुनाया है. कोर्ट ने माना की बाबरी मस्जिद गिराने के पीछे कोई साजिश नहीं थी. साथ ही कहा कि फोटो से कोई आरोपी नहीं हो सकता है. मुगल बादशाह द्वारा 1528 में बनाये गये इस मस्जिद के ढांचे को 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की एक भीड़ ने दिया था. मामले में जिसमें 49 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इस रिपोर्ट के माध्यम से समझते हैं 1528 से 2020 तक क्या क्या हुआ.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2020 2:56 PM
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बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आज सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया. सीबीआई कोर्ट के जज सुरेंद्र यादव ने यह फैसला सुनाया है. कोर्ट ने माना की बाबरी मस्जिद गिराने के पीछे कोई साजिश नहीं थी. साथ ही कहा कि फोटो से कोई आरोपी नहीं हो सकता है. मुगल बादशाह द्वारा 1528 में बनाये गये इस मस्जिद के ढांचे को 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की एक भीड़ ने दिया था. मामले में जिसमें 49 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इस रिपोर्ट के माध्यम से समझते हैं 1528 से 2020 तक क्या क्या हुआ.

1528 मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था. इसके बाद 1885 में महंत रघुवीर दास ने विवादित स्थल के बाहर तंबू लगाने की इजाजत देने के लिए फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल की थी. हालांकि न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था.

इसके बाद 1949 में बाबरी मस्जिद के मध्य गुंबद के ठीक नीचे राम लला की मूर्तियां रख दी गयीं. फिर 1950 में गोपाल विशारद ने रामलला की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए फैजाबाद जिला अदालत में वाद दायर किया. परमहंस रामचंद्र दास ने मूर्तियां रखने और उनकी पूजा जारी रखने के सिलसिले में वाद प्रस्तुत किया .

इसके बाद फिर 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल पर कब्जा दिलाने के आग्रह के सिलसिले में वाद दायर किया. इसके तीन वर्ष बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल पर दावे का वाद दाखिल किया. फिर एक फरवरी 1986 में स्थानीय अदालत ने सरकार को हिंदू श्रद्धालुओं के लिए विवादित स्थल को खोलने का आदेश दिया.

इसके बाद 14 अगस्त 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए. फिर राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन तेज होता गया और 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई.

बाबरी मंदिर विध्वंस के बाद 3 अप्रैल 1993 में विवादित स्थल पर जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र सरकार ने अयोध्या में अधिग्रहण संबंधी कानून पारित किया. इस कानून को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस्माइल फारुकी समेत कई वादियों ने वाद दायर किया. फिर 24 अक्टूबर 1994 को उच्चतम न्यायालय ने इस्माइल फारुकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है.

अप्रैल 2002 में उच्चतम न्यायालय ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े वाद की सुनवाई शुरू की. 13 मार्च 2003 को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अधिग्रहित जमीन पर किसी भी तरह की पूजा या इबादत संबंधी गतिविधि नहीं की जाएगी. 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने और उन्हें सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला को देने के आदेश दिए.

इसके बाद 9 मई 2011 को उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई. 21 मार्च 2017 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने सभी पक्षकारों को आपसी सुलह समझौते का सुझाव दिया. 19 अप्रैल 2017 में उच्चतम न्यायालय ने बाबरी विध्वंस मामले को लेकर रायबरेली की विशेष अदालत में चल रही कार्यवाही को लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) में स्थानांतरित कर दिया. साथ ही पूर्व में आरोप के स्तर पर बरी किये गये अभियुक्तों के खिलाफ भी मुकदमा चलाने का आदेश दिया.

30 मई 2017 को लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतम्भरा और विष्णु हरि डालमिया पर साजिश रचने का आरोप लगाया गया. 31 मई 2017 को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अभियोजन की कार्यवाही शुरू हुई. 13 मार्च 2020 को सीबीआई की गवाही की प्रक्रिया तथा बचाव पक्ष की जिरह भी पूरी हुई. मामले में 351 गवाह और 600 दस्तावेजी साक्ष्य सौंपे गये.

चार जून 2020 को अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 113 के तहत अभियुक्तों के बयान दर्ज होना शुरू हुआ. 14 अगस्त 2020 को अदालत ने सीबीआई को लिखित बहस दाखिल करने का आदेश दिया. 31 अगस्त 2020 को सभी अभियुक्तों की ओर से लिखित बहस दाखिल किया गया. एक सितम्बर 2020 को दोनों पक्षों की मौखिक बहस पूरी हुई.

16 सितम्बर 2020 को अदालत ने 30 सितम्बर को अपना फैसला सुनाने का आदेश जारी किया. न्यायाधीश एस के यादव ने मामले के सभी अभियुक्तों को फैसला सुनाए जाने वाले दिन अदालत में हाजिर होने के निर्देश दिए. 30 सितंबर को विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुनाया और सभी आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया.

Posted By: Pawan Singh

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