Babu Veer Kunwar Singh: आरा के नायक कुंवर सिंह की निराली थी प्रेम कहानी, जानें कैसे किया अंग्रेजों को पस्त

Babu Veer Kunwar Singh: 1857 के क्रांति के महान योद्धा बाबू वीर कुंवर के प्रेम कहानी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं आइए आज उनके अनोखे कुछ कहानियों के बारे में बताते हैं.

By Ayush Raj Dwivedi | January 23, 2025 6:15 PM

Babu Veer Kunwar Singh: साल 1857 देश भर में अंग्रेजी हुकूमत अपने परवान पर थी. उस वक्त बिहार के भोजपुर ज़िला के आरा के रहने वाले बाबू वीर कुंवर सिंह खूब चर्चा में आए. बाबू वीर कुंवर सिंह गद्दी साल 1830 में मिली. कुंवर सिंह को गुरिल्ला युद्ध का माहिर योद्धा माना जाता था. बहादुरी शौर्य और अद्बम्य साहस का परिचय देते हुए कुंवर सिंह ने अंग्रेज़ी हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए. इनके वीरता की कहानियां देश भर के युवा पीढ़ी को जानना चाहिए. एक 80 वर्ष का बुजुर्ग कैसे अंग्रेजों के ख़िलाफ़ मजबूती से लगता है और उनको बिहार से लेकर अवध तक खदेड़ देता है. वीर कुंवर सिंह के इसी साहस की कहानी को आज हम बताने जा रहे हैं.

अप्रैल 1857 में किया था आरा पर कब्जा

बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म बिहार के आरा के नजदीक जगदीशपुर नामक जगह पर हुआ था. इनके शौर्य का अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि जैसे जैसे अंग्रेज़ी ताक़त मजबूत हो रही थी वैसे ही दानापुर रेजिमेंट के साथ मिलकर वीर कुंवर सिंह ने आरा शहर पर कब्जा कर लिया. यह वो वक्त था जब आरा पूरी तरह से अंगेजों से मुक्त हो गया. कुंवर सिंह ने अपने सेना के साथ तमाम कैदियों को भी छुड़वाया.इसके बाद कुँवर सिंह ने अपने पराक्रम से आरा से लेकर यूपी के आजमगढ़ तक अंग्रेजों को खदेड़ दिया. कुंवर सिंह ने अपने सिपाहियों के साथ रीवा, बनारस, से लेकर बलिया और गाजीपुर तक अंग्रेजों से आजाद कर दिया था. वीर कुंवर सिंह का साहस ऐसा था कि आठ महीनों तक अंग्रेजी हुकूमत उनसे मुकाबला करने से बचते रही हैं. बाबू कुंवर सिंह को छापामार युद्ध का सबसे निपुण योद्धा माना जाता है. कुंवर सिंह के वंशज मूल रूप से उज्जैन के परमार वंश के राजपूत थे. बात दें कि इसी वंश के राजा भोज ने भोजपुरी भाषा का विस्तार किया था. इन्ही के नाम पर भोजपुर जिला नाम रखा गया.

देश के जाने माने लेखक सुंदरलाल ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि साल 1858 में जब अंग्रेजी हुमूकत ने आरा के जगदीशपुर किला को घेर लिया था तो उस महल में मौजूद 100 से अधिक महिलाओं ने तोप के सामने खड़े होकर जान दे दिया. देश के महान स्वतंत्रता सेनानी वीडी सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’में जिन सात योद्धाओं के बारे में बताया है उन्मे बाबू वीर कुंवर सिंह और अमर सिंह के बारे में भी वर्णित है. देश के कई लेखकों ने वीर कुंवर सिंह के बारे में बहुत कुछ लिखा है.

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वीर कुंवर सिंह की निराली थी प्रेम कहानी(Babu Veer Kunwar Singh🙂

मुरली मनोहर श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक “वीर कुंवर सिंह की प्रेमकथा” में काफी कुछ वर्णित है.यह पुस्तक श्रीवास्तव की एक प्रसिद्ध कृति है, जिसमें वीर कुंवर सिंह के जीवन और प्रेमकथा को दर्शाया गया है. इतना ही नहीं वीर कुंवर सिंह, जिन्हें 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रूप में जाना जाता है उनकी प्रेमकथा काफी रोमांचक और प्रेरणादायक है. श्रीवास्तव की पुस्तक में इस प्रेमकथा को काफी संवेदनशीलता और ओजस्विता से प्रस्तुत किया गया है, जिसके कारण यह पुस्तक काफी लोकप्रिय हो रही है. इस कहानी में आरा की मशहूर नर्तकी धरमन बीबी, जिससे वीर कुंवर सिंह को गहरा लगाव था, उनके बारे में बताया गया है. उसी नर्तकी ने बाबू साहब को प्रेरित करने के साथ-साथ नौ माह के युद्ध में लगभग सभी युद्धों में सेनापति बनकर साथ निभाते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थीं. आरा में आज भी धरमन चौक मौजूद है.

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धरमन बाई की कहानी काफी दिलचस्प है. इनकी नृत्यकाल आज भी आरा शहर में है. यह वो जगह थी जहां धरमन बाई की महफ़िल लगती थी. हालाकि इनको वो पहचान नहीं मिल सकी जिसकी ये हकदार थी. मनोहर श्रीवास्तव ने अपने नाटक में को काफी बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया. इस नाटक को बड़े ही मनोरंजक ढंग से दिखाया गया है कि कुंवर सिंह किस प्रकार अपनी रियासत में सभी धर्मों और सभी जातियों के लोगों के सुख दुख का ख्याल रखते हैं. नर्तकी धर्मंन बीबी मुसलमान थी जो बाद में उनकी पत्नी भी बनी. धर्म, सभ्यता का परिचय देते हुए उन्होंने धर्मं के कहने पर आरा और जगदीशपुर में मस्जिद का निर्माण कराया, तो करमन के नाम पर आरा में करमन टोला को भी बसाया. कुंवर सिंह जाति और धर्म के नाम पर किसी से भेद नहीं रखते थे. मुस्लिम नर्तकी धर्मंन को अपनी अर्धांगनी बनाया तो महादलित दुसाध जाती की महिला को अपनी बहन बनाकर उसे 52 बीघे का का भूखण्ड उपहार में दे दिया. जिसे आज भी दुसाधी बधार के नाम से जाना जाता है.

नहीं मिल पाया है बाबू वीर कुंवर सिंह को उनका हक

जिस बलिदानी वीर स्वतंत्रता सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह को जो सम्मान मिलना चाहिए शायद वो आज तक नहीं मिल पाया है. आरा के जगदीशपुर स्थित कुंवर सिंह का किला आज भी वैसा विकसित नहीं हो पाया जैसा होना चाहिए. किले की हालत काफी जर्जर हो चुकी है. आज के दौर के युवाओं को कुंवर सिंह के इतिहास और साथ ही उनके वीर गाथा को जानना जरूरी है.

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