नयी दिल्ली : कोरोना वायरस के संक्रमण से निबटने के लिए पूरे देश में भीलवाड़ा मॉडल लागू होने वाला है. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) नयी दिल्ली के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने सरकार को चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस तीसरे स्टेज में पहुंच चुका है. कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ रहा है. इसलिए पूरे देश में भीलवाड़ा मॉडल लागू कर दिया जाना चाहिए. इसके बाद से लोग जानने को उत्सुक हैं कि भीलवाड़ा मॉडल आखिर है क्या?
दरअसल, भीलवाड़ा में राजस्थान का पहला कोरोना मरीज मिला था. इसके बाद वहां राज्य सरकार ने तेजी से जांच शुरू की और सभी संदिग्ध लोगों को आइसोलेट कर दिया. जिला प्रशासन ने 3 अप्रैल से भीलवाड़ा में 10 दिन की बंद को पूरी सख्ती से लागू किया. इसके लिए एनजीओ व मीडिया को जारी पास भी निरस्त कर दिये गये.
भीलवाड़ा राजस्थान में कोरोना वायरस पॉजिटिव मामलों के कारण चर्चा में आया था. राज्य के 30 प्रतिशत से अधिक मामले इसी शहर में आये थे. शहर के लोगों से इस दौरान पूरी तरह से घरों में रहने को कहा गया और जिला प्रशासन ने सभी जरूरी सेवाएं घरों पर ही देने की समय सारिणी बना दी.
भीलवाड़ा के जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने स्पष्ट कह दिया कि तीन अप्रैल से 10 दिन के लिए लोगों को घरों में ही रहना होगा. उन्होंने कहा कि आवश्यक सामान खरीदते समय भी लोगों को ‘सामाजिक दूरी’ का कड़ाई से पालन करना होगा, अन्यथा सामान आपूर्ति करने वाली वैन को वहां से हटा लिया जायेगा. फिर यह वैन या वाहन पांच दिन बाद ही आयेगा.
प्रशासन की सख्ती के बाद भीलवाड़ा में कोरोना वायरस के पॉजिटिव मामलों में तेजी से कमी आयी. कलेक्टर ने कहा था कि अगर लोग आने वाले दिनों में अनुशासन में रहेंगे और प्रशासन का सहयोग करेंगे, तो हम कोरोना वायरस संकट पर जीत हासिल करेंगे.
राज्य में 31 मार्च तक कुल 3,447 सैंपल लिये गये थे, जिनमें से 1,194 अकेले भीलवाड़ा से थे. स्वास्थ्य टीमों ने जिले की 26 लाख से अधिक आबादी की जांच की. भीलवाड़ा में दो सर्वेक्षणों में 3.74 लाख लोगों की जांच की गयी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 22.22 लाख लोगों की. भीलवाड़ा राज्य में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों के कारण राज्य सरकार के लिए चिंता का कारण बन गया था.
दरअसल, यहां एक निजी अस्पताल के तीन डॉक्टरों और नौ नर्सिंग स्टाफ कोरोना पॉजिटिव पाये गये थे. इसके बाद जो भी मामले सामने आये, उनमें से ज्यादातर या तो इस अस्पताल के कर्मचारी थे या यहां इलाज कराने आये थे. मामले सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने जिले में कर्फ्यू लगा दिया और जिले की सीमाओं को सील करते हुए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण और स्क्रीनिंग की थी.