इस साल भारत में भीषण गर्मी पड़ेगी. यह अनुमान मौसम संबंधी एक ताजा शोध के नतीजे में जताया गया है. इस अनुमान के अनुसार अगर इस दशक में तापमान में बढ़त को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर भी रोक दिया जाए, तो भी ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम नहीं होगा. इससे दक्षिण एशिया के देशों में लू आने की संभावना काफी बढ़ जायेगी. इससे कृषि उत्पादन से लेकर लोगों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ेगा.
भारत में, खास कर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में खेती पर बुरा असर पड़ेगा. साथ ही समुद्री तट पर बसे शहरों कोलकाता, मुंबई, चेन्नई में भी गर्मी का प्रकोप बढ़ जायेगा. यह दावा अमेरिका स्थित ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने शोध में किया है. शोध में कहा गया है कि इस बार भीषण गर्मी के कारण भारत के खाद्यान्न उत्पादन करने वाले बड़े क्षेत्रों पर भी असर पड़ेगा. तेज गर्मी की वजह से काम करने में परेशानी होगी और काम करना खतरे से खाली नहीं होगा.
वर्ष 2017 में किये गये शोध से उलट: यह दावा वर्ष 2017 में किये गये शोध से उलट है. वर्ष 2017 में किये गये शोध में कहा गया था कि लू के थपेड़ों की संख्या 21वीं शताब्दी के अंत में व्यापक संख्या में आयेगी. जर्नल जियोफिजिक्स रिसर्च लेटर में प्रकाशित शोध के मुताबिक दो डिग्री तापमान बढ़ने से आम लोगों पर खतरा पहले के मुकाबले तीन गुणा अधिक बढ़ जायेगा. शोधकर्ता मोहतसिम अशफाक का कहना है कि दक्षिण एशिया देशों के लिए भविष्य सुरक्षित नहीं दिख रहा है, लेकिन भावी खतरे को तापमान में कमी लाकर कम किया जा सकता है और यह कदम तत्काल उठाना होगा.
वेट बल्ब टेंपरेचर के आधार पर की गयी है गणना : आम लोगों के गर्मी के अहसास होने का आकलन वैज्ञानिकों ने वेट बल्ब टेंपरेचर के आधार पर गणना कर की है, जिसमें तापमान और आर्द्रता दोनों को शामिल किया है. शोध में कहा गया है कि 32 डिग्री वेट बल्व टेंपरेचर मजदूरों के लिए खतरनाक माना जाता है और अगर यह 35 डिग्री हो गया, तो इंसान का शरीर खुद को ठंडा नहीं कर पाता है और यह जानलेवा साबित हो सकता है. क्लाइमेट चेंज पर इंटरगर्वमेंटल पैनल के मुताबिक औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है और यह वृद्धि 2040 तक 1.5 डिग्री तक हो जायेगी.
2015 में भारत-पाक में पांचवीं सबसे भीषण गर्मी: वर्ष 2015 में भारत और पाकिस्तान में अब तक की पांचवीं सबसे भीषण गर्मी पड़ी और इसके कारण 3500 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी. शोध मौसम में आ रहे बदलाव और भविष्य में बढ़ने वाली आबादी को ध्यान में रखकर तैयार की गयी है.