केंद्र की मोदी सरकार जनता के हित में कई फैसले लेती है. इस क्रम में पहली बार देश में केंद्र सरकार ने गहन चिकित्सा इकाई यानी आईसीयू (Intensive Care Unit-ICU) के तहत इलाज के लिए मरीज की जरूरत के हिसाब से फैसला लेने के लिए अस्पतालों के लिए दिशानिर्देश जारी करने का काम किया है. आईसीयू में भर्ती संबंधी इन दिशानिर्देशों की बात करें तो इसमें क्रिटिकल केयर मेडिसिन में विशेषज्ञता वाले 24 शीर्ष डॉक्टरों के एक पैनल ने तैयार किया गया है. इस संबंध में अंग्रेजी वेबसाइट टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर प्रकाशित की है. पैनल ने उन मेडिकल हालातों की सूची तैयार की है, जिनके तहत रोगी को आईसीयू में रखने की आवश्यकता होती है. इनमें रोगी की चेतना से संबंधित बातें या यदि मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो तो, उन्हें गंभीरता से लेने की बातें शामिल हैं. किसी भी गहन निगरानी की जरूरत वाले रोगी को गंभीर बीमारी के मामलों में आईसीयू देखभाल करने की भी सिफारिश इसमें की गई है.
जो रिपोर्ट प्रकाशित की गई है उसके अनुसार, मरीज की सर्जरी के बाद के मामलों में हालत बिगड़ने की संभावना और बड़ी सर्जरी के मामलों भी आईसीयू में भर्ती करने की सिफारिश इसमें की गई है. साथ ही दिशानिर्देश में उन रोगियों को इस सूची से बाहर रखने की सिफारिश की गई है, जिनको इसकी खास जरूरत नहीं है. इस दिशानिर्देशों को तैयार करने में शामिल विशेषज्ञों में से एक एक्सपर्ट ने कहा कि आईसीयू (ICU) एक सीमित संसाधन है. इन सिफारिशों का मकसद एक ही है कि विवेकपूर्ण रूप से काम करना. ताकि जिन लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, उन्हें प्राथमिकता पर मिले और इलाज ऐसे लोगों को आसानी से मुहैया करवाया जा सके.
विकसित देशों में मरीजों के परीक्षण के लिए प्रोटोकॉल
इंडियन कॉलेज ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सचिव डॉ. सुमित रे ने कहा कि ये बाइंडिंग नहीं है. यह केवल मार्गदर्शन के लिए हैं. उन्होंने कहा कि आईसीयू में मरीज को एडमिट करना और डिस्चार्ज करना उसकी स्थिति पर निर्भर करता है. इसे इलाज करने वाले डॉक्टर के विवेक पर बहुत कुछ छोड़ दिया गया है. आगे डॉ. रे ने कहा कि अधिकांश विकसित देशों में मरीजों के परीक्षण के लिए प्रोटोकॉल मौजूद हैं, ऐसा इसलिए ताकि संसाधनों का अच्छी तरह से इस्तेमाल किया जा सके.
देश में लगभग एक लाख आईसीयू बेड
भारत में लगभग एक लाख आईसीयू बेड हैं, जिनमें से ज्यादातर प्राइवेट फैसिलिटी में हैं और बड़े शहरों में मौजूद है. मामले को लेकर वकील और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि गरीब लोग जो प्राइवेट अस्पतालों का खर्च नहीं उठा सकते, उन्हें आईसीयू बिस्तर पाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है. कभी जरूरत पड़ने पर भी ऐसे लोगों को अस्पताल में बेड नहीं मिल पाता है. उन्होंने कहा कि मरीजों को उनकी स्थिति के आधार पर आईसीयू देखभाल के लिए प्राथमिकता देने का विचार बहुत ही अच्छा है, लेकिन सामान्य तौर पर सरकार को सभी को महत्वपूर्ण देखभाल प्रदान करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने की जरूरत है.