उच्चतम न्यायालय बिल्कीस बानो मामले (Bilkis bano Case) के 11 दोषियों को गुजरात सरकार की ओर से रिहा किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने के लिए सहमत हो गया. प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले में दोषियों को सजा में दी गई छूट और उसके कारण उनकी रिहाई के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और वकील अपर्णा भट की दलीलों पर संज्ञान लिया.
कपिल सिब्बल ने कहा, ”हम केवल छूट को चुनौती दे रहे हैं, उच्चतम न्यायालय के आदेश को नहीं. उच्चतम न्यायालय का आदेश ठीक है. हम उन सिद्धांतों को चुनौती दे रहे हैं, जिनके आधार पर छूट दी गई.” शीर्ष अदालत ने इससे पहले गुजरात सरकार से छूट की याचिका पर विचार करने को कहा था. गौरतलब है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस पर हमले और 59 यात्रियों, मुख्य रूप से ‘कार सेवकों’ को जलाकर मारने के बाद गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान तीन मार्च, 2002 को दाहोद में भीड़ ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी.
मरने वालों में बिल्कीस बानो की तीन साल की बेटी सालेहा भी शामिल थी. घटना के समय बिल्कीस बानो गर्भवती थी और वह सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हुई थी. इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम कैद की सजा सुनाई गई थी. माफी नीति के तहत गुजरात सरकार की ओर से दोषियों को माफी दिए जाने के बाद, बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को, 15 अगस्त को गोधरा के उप कारागार से रिहा कर दिया गया था, जिसकी विपक्षी पार्टियों ने कड़ी निंदा की है.
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मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को सभी 11 आरोपियों को बिल्कीस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी. बाद में इस फैसले को बंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था. इन दोषियों को उच्चतम न्यायालय के निर्देश के विचार करने के बाद रिहा किया गया. शीर्ष अदालत ने सरकार से वर्ष 1992 की क्षमा नीति के तहत दोषियों को राहत देने की अर्जी पर विचार करने को कहा था. इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कारावास की सजा काट ली थी, जिसके बाद एक दोषी ने समयपूर्व रिहा करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसपर शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था. (भाषा)