बिल्कीस बानो मामला इन दिनों सुर्खियों में है. गुजरात सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले में 11 दोषियों को माफी देने के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी लेने का काम किया गया था. इस क्षमादान को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता कुछ नहीं बल्कि ‘‘दूसरों के काम में अड़ंगा डालने वाले” हैं और ‘‘इनका इससे कुछ लेना-देना नहीं है.
गुजरात सरकार की ओर से आगे कहा गया कि क्योंकि इस मामले में जांच सीबीआई ने की थी तो उसने केंद्र से दोषियों को माफी देने की मंजूरी देने के लिए ‘‘उचित आदेश” ले लिये थे. यहां चर्चा कर दें कि गुजरात सरकार की ओर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभासिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाउल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा की जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल किया है.
गुजरात सरकार के गृह विभाग में अवर सचिव मयूरसिंह मेतुभा वाघेला द्वारा हलफनामा दाखिल किया गया जिसमें कहा गया है कि मैं सम्मानपूर्वक यह बताता हूं कि जिन परिस्थितियों में यह याचिका दायर की गयी है, उसका अवलोकन करने में यह पाया गया है कि याचिकाकर्ता पीड़ित व्यक्ति नहीं है बल्कि एक अजनबी है.
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गौरतलब है कि 21 वर्षीय बिल्कीस बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी. घटना के वक्त वह पांच महीने की गर्भवती थी.
इससे पहले सितंबर के महीने में रैमन मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे और अन्य को 2002 में हुए दंगों की पीड़िता बिल्कीस बानो के साथ एकजुटता व्यक्त करने के वास्ते बिना अनुमति के पदयात्रा निकालने के लिए गुजरात के खेड़ा जिले के सेवलिया में हिरासत में ले लिया गया था. दाहोद जिले में स्थित बिल्कीस बानो के गांव रंधीकपुर से पदयात्रा निकालने की योजना बनाने के लिए पांडे और अन्य को पंचमहल पुलिस ने गोधरा में हिरासत में ले लिया था. उन्हें बाद में खेड़ा सीमा पर छोड़ा गया था.