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स्वच्छता व समाजसेवा को लेकर प्रतिबद्धता के प्रतिमान थे बिंदेश्वर पाठक

सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का विगत दिनों निधन हो गया. स्वच्छता और समाजसेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और जज्बे को पूरी दुनिया ने हर बार सराहा. आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्होंने प्रेरणा का प्रतिमान गढ़ा. उनके कार्यों, समर्पण और उनके साथ के अनुभवों को साझा करता यह विशेष आलेख.

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के समारोह के बीच, इस खबर को आत्मसात कर पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था कि बिंदेश्वर पाठक जी हमारे बीच नहीं रहे. सहज, सरल, विनम्र व्यक्तित्व के धनी, सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर जी का जाना एक अपूरणीय क्षति है. स्वच्छता को लेकर उनमें जो जज्बा था, वह मैं तब से देखता आ रहा हूं, जब मैं गुजरात में था. जब मैं दिल्ली आया, तब उनसे भिन्न-भिन्न विषयों पर संवाद और बढ़ गया था. मुझे याद है, जब मैंने साल 2014 में लाल किले से स्वच्छता के विषय पर चर्चा की थी, तो बिंदेश्वर जी कितने उत्साहित हो गये थे. वे पहले दिन से ही स्वच्छ भारत अभियान से जुड़ गये थे. उनके प्रयासों ने इस अभियान को बहुत ताकत दी.

हम अक्सर सुनते हैं One Life, One Mission, लेकिन One Life, One Mission क्या होता है, यह बिंदेश्वर जी के जीवन सार में नजर आता है. उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वच्छता और उससे जुड़े विषयों के लिए समर्पित कर दिया. 80 साल की आयु में भी वे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उतने ही ऊर्जावान थे. वे एक तरह से चिर युवा थे. जिस राह पर दशकों पहले चले थे, उस राह पर अटल रहे, अडिग रहे.

आजकल अगर कोई टॉयलेट जैसे विषय पर फिल्म बनाता है, तो इसे लेकर चर्चा होने लगती है. लोग सोचने लगते हैं कि ये भी कोई विषय हुआ? हम अंदाजा लगा सकते हैं कि उस दौर में बिंदेश्वर जी के लिए शौचालय जैसे विषय पर काम करना कितना मुश्किल रहा होगा. उन्हें खुद कितने ही संघर्ष से गुजरना पड़ा, लोगों की बातें सुननी पड़ीं, लोगों ने उनका उपहास भी उड़ाया, लेकिन समाज सेवा की उनकी प्रतिबद्धता इतनी बड़ी थी कि उन्होंने अपना जीवन इस काम में लगा दिया.

बिंदेश्वर जी का एक बहुत बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने गांधी जी के स्वच्छता के विचारों का संस्थागत समाधान दिया. मैं समझता हूं कि यह मैनेजमेंट के छात्रों के लिए अध्ययन का बहुत सटीक विषय है.

विचार कितना ही बड़ा क्यों न हो, अगर उसे सही तरीके से इंप्लीमेंट न किया जाए, जमीन पर न उतारा जाए, तो फिर वह विचार अप्रासंगिक हो जाता है, निरर्थक हो जाता है. बिंदेश्वर जी ने स्वच्छता के विचार को, एक बहुत ही इनोवेटिव तरीके से एक संस्था का रूप दिया. सुलभ इंटरनेशनल के माध्यम से उन्होंने एक ऐसा आर्थिक मॉडल समाज को दिया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. आज उनके ही परिश्रम का परिणाम है कि सुलभ शौचालय के भी कई तरह के मॉडल बने और इस संस्था का देश के कोने-कोने में विस्तार हुआ.

हमारी आज की युवा पीढ़ी को बिंदेश्वर पाठक जी के जीवन से श्रम की गरिमा करना भी सीखना चाहिए. उनके लिए कोई न काम छोटा था, न ही कोई व्यक्ति. साफ-सफाई के काम में जुटे हमारे भाई-बहनों को गरिमामयी जीवन दिलवाने के लिए उनके प्रयास की दुनिया भर में प्रशंसा हुई है. मुझे याद है, मैंने जब साफ-सफाई करने वाले भाई-बहनों के पैर धोये थे, तो बिंदेश्वर जी इतना भावुक हो गये थे कि उन्होंने मुझसे काफी देर तक उस प्रसंग की चर्चा की थी.

मुझे संतोष है कि स्वच्छ भारत अभियान आज गरीबों के लिए गरिमामय जीवन का प्रतीक बन गया है. ऐसी भी कई रिपोर्ट्स आयी हैं, जिनसे यह साबित हुआ है कि स्वच्छ भारत अभियान के कारण आम लोगों को गंदगी से होने वाली बीमारियों से मुक्ति मिल रही है और स्वस्थ जीवन के रास्ते खुल रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा है कि स्वच्छ भारत मिशन की वजह से देश में तीन लाख लोगों की मृत्यु होने से रुकी है. इतना ही नहीं, यूनिसेफ ने यह तक कहा है कि स्वच्छ भारत मिशन की वजह से गरीबों के हर साल 50 हजार रुपये तक बच रहे हैं. अगर स्वच्छ भारत मिशन नहीं होता, तो इतने ही रुपये गरीबों को गंदगी से होने वाली बीमारियों के इलाज में खर्च करने पड़ते. स्वच्छ भारत मिशन को इस ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए बिंदेश्वर जी का मार्गदर्शन बहुत ही उपयोगी रहा.

बिंदेश्वर जी के सामाजिक कार्यों का दायरा स्वच्छता से भी आगे बढ़ कर था. उन्होंने वृंदावन, काशी, उत्तराखंड और अन्य क्षेत्रों में महिला सशक्तीकरण से जुड़े भी अनेक कार्य किये. विशेष कर ऐसी बेसहारा महिलाओं, जिनका कोई नहीं होता, उनकी मदद के लिए बिंदेश्वर जी ने बड़े अभियान चलाये.

बिंदेश्वर जी के समर्पण भाव से जुड़ा एक और वाकया मुझे याद आता है. गांधी शांति पुरस्कार के लिए नाम तय करने वाली कमेटी में बिंदेश्वर जी भी थे. एक बार इस कमेटी की बैठक तय हुई, तो उस समय बिंदेश्वर जी विदेश यात्रा पर थे. जैसे ही उन्हें इस बैठक का पता चला, उन्होंने कहा कि मैं तुरंत वापस आ जाता हूं. तब मैंने उन्हें आग्रह किया था कि वे अपने सुझाव विदेश से ही भेज दें. बहुत आग्रह के बाद वे मेरी बात माने थे. यह दिखाता है कि बिंदेश्वर जी अपने कर्तव्यों के प्रति कितना सजग रहते थे.

आज जब बिंदेश्वर पाठक जी भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, हमें उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप स्वच्छता के संकल्प को फिर दोहराना है. विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत आवश्यक है कि भारत स्वच्छ भी हो, स्वस्थ भी हो. इसके लिए हमें बिंदेश्वर जी के प्रयासों को निरंतर आगे बढ़ाना होगा. स्वच्छ भारत से स्वस्थ भारत, स्वस्थ भारत से समरस भारत, समरस भारत से सशक्त भारत, सशक्त भारत से समृद्ध भारत की यह यात्रा, अमृतकाल की सबसे जीवंत यात्रा होगी. हां, इस यात्रा में मुझे बिंदेश्वर जी की कमी बहुत महसूस होगी. उन्हें एक बार फिर विनम्र श्रद्धांजलि.

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