26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गोबर से होगा बायो-सीएनजी का उत्पादन, गोशाला अर्थव्यवस्था पर काम कर रहा है नीति आयोग

हम सिर्फ यह देख रहे हैं कि गोशाला अर्थव्यवस्था में सुधार की क्या संभावनाएं हैं. हम इस संभावना को देख रहे हैं कि क्या हम गोशाला से प्राप्त होने वाले उप-उत्पादों यानी गोबर से कुछ मूल्य सृजित कर सकते हैं या इसका मूल्यवर्धन कर सकते हैं.

नयी दिल्ली: नीति आयोग गाय के गोबर के व्यावसायिक इस्तेमाल और किसानों के लिए बोझ बनने वाले आवारा पशुओं से जुड़े विभिन्न मसलों को हल करने के लिए एक पर काम कर रहा है. नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने यह जानकारी देते हुए कहा कि हम गोशाला अर्थव्यवस्था (Cowshed Economy) में सुधार करने के इच्छुक हैं. आयोग ने आर्थिक शोध संस्थान एनसीएईआर (NCAER) को गोशालाओं की व्यावसायिक लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए उनके अर्थशास्त्र पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी कहा है.

यूपी, राजस्थान की गोशालाओं का किया अध्ययन

चंद ने कहा, ‘हम सिर्फ यह देख रहे हैं कि गोशाला अर्थव्यवस्था में सुधार की क्या संभावनाएं हैं. हम इस संभावना को देख रहे हैं कि क्या हम गोशाला से प्राप्त होने वाले उप-उत्पादों यानी गोबर से कुछ मूल्य सृजित कर सकते हैं या इसका मूल्यवर्धन कर सकते हैं.’ चंद के नेतृत्व में सरकारी अधिकारियों की एक टीम ने वृंदावन (उत्तर प्रदेश), राजस्थान और भारत के अन्य हिस्सों में बड़ी गोशालाओं का दौरा किया और उनकी स्थिति का आकलन किया.

गाय के गोबर से बनेगा बायो-सीएनजी

उन्होंने बताया कि शायद 10 प्रतिशत या 15 प्रतिशत गायें थोड़ी मात्रा में दूध देती हैं, लेकिन यह श्रम, चारा और उपचार की लागत को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. सरकारी शोध संस्थान में कृषि नीतियों की देखरेख करने वाले चंद ने कहा, ‘गाय के गोबर का इस्तेमाल बायो-सीएनजी बनाने के लिए किया जा सकता है. इसलिए हम इन तरह की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं.’

Also Read: गुमला शहर के श्मशान घाट के करीब बनेगी गोशाला, लावारिस पशुओं को मिलेगा आश्रय
यूपी चुनाव में मुद्दा बनी थी आवारा पशुओं की समस्या

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय अपने मालिकों द्वारा छुट्टा छोड़ दिये गये आवारा पशुओं की समस्या बड़ी चर्चा का विषय रही थी. नीति आयोग के सदस्य ने गोबर से बायो-सीएनजी के उत्पादन के फायदे पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, ‘पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की बजाय, हम इसे ऊर्जा के रूप में उपयोग करेंगे, जो लाभ भी देगा.’

फसलों के लिए हानिकारक आवारा पशु

कृषि अर्थशास्त्री रमेश चंद ने कहा कि अवांछित मवेशियों को खुले में छोड़ना भी फसलों के लिए हानिकारक है. उन्होंने कहा, ‘इसलिए हम गोशाला अर्थव्यवस्था पर काम कर रहे हैं.’ राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 में 19.25 करोड़ मवेशी और 10.99 करोड़ भैंस थीं, जिससे कुल गोजातीय आबादी 30.23 करोड़ हो गयी है.

श्रीलंका से क्या सीखेगा भारत

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत को श्रीलंका से कुछ सीखना है, जिसकी जैविक खेती ने श्रीलंका के आर्थिक और राजनीतिक संकट को बढ़ा दिया है, श्री चंद ने कहा कि श्रीलंका ने पूरे देश में इसे (जैविक खेती) अपनाने का फैसला किया और उसने सिर्फ इतना कहा कि वहां उर्वरक इत्यादि का आयात नहीं होगा.

Also Read: Jammu and Kashmir : गोशाला में था लश्कर का ठिकाना, सर्च अभियान में जवानों को मिली बड़ी सफलता
छोटे पैमाने पर होगी जैविक खेती

उन्होंने कहा, ‘भारत के मामले में जब भी हम (जैविक खेती के बारे में) कोई पहल करते हैं, तो आप जानते हैं कि यह धीरे-धीरे होगा.’ यह देखते हुए कि अभी भारत में खाद्यान्न कुछ अधिशेष मात्रा में है, रमेश चंद ने कहा, ‘हम इसे (जैविक खेती या प्राकृतिक खेती) धीरे-धीरे छोटे पैमाने पर आजमा सकते हैं.’

Posted By: Mithilesh Jha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें