Bio Fuel: बढ़ता प्रदूषण और पेट्रो उत्पादों का आयात देश के लिए प्रमुख चिंता का कारण है. इस मामले में देश को आत्मनिर्भर बनने के लिए वैश्विक भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के लिए पेट्रो उत्पादों का आयात कम करना बेहद जरूरी है. मौजूदा समय में पेट्रो उत्पादों का आयात लगभग 22 लाख करोड़ रुपये है. केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने नीति आयोग द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मेथनॉल सेमिनार एवं प्रदर्शनी को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा और किसानों की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए बायो फ्यूल के उपयोग को बढ़ावा देना होगा.
मेथनॉल, इथेनॉल और बायो-सीएनजी जैसे वैकल्पिक ईंधन का उपयोग करके भारत लॉजिस्टिक लागत को कम कर सकता है. भारत बायो फ्यूल के क्षेत्र में खास तौर पर मेथनॉल के मामले में काफी प्रगति की है. मेथनॉल को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग की कोशिश का असर दिख रहा है. यह किफायती और प्रदूषण मुक्त भी है. कुछ राज्यों में उपलब्ध निम्न गुणवत्ता वाले कोयले का भी मेथनॉल बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है.
पराली का उपयोग वैकल्पिक ईंधन के लिए किए जाने की जरूरत
गडकरी ने कहा कि कचरे को संपदा में बदला जा सकता है. सड़क निर्माण में पुराने टायर पाउडर और प्लास्टिक जैसी सामग्रियों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे बिटुमेन के आयात में कमी आयी है. फसल के कचरे का उपयोग करने की पहल देश भर के किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है. चावल के भूसे से जैव-सीएनजी के उत्पादन किया जा रहा है और इससे जुड़े 475 परियोजनाओं के परिणाम बेहतर रहे हैं. पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में यह योजना चल रही है.
चावल के भूसे से जैव-सीएनजी बनाने का अनुपात लगभग 5:1 टन है. पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की समस्या के बारे में उन्होंने कहा कि पराली का पांचवां हिस्सा ही प्रोसेस हो रहा है. बेहतर योजना के साथ पराली को वैकल्पिक ईंधन के कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करके पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है. देश को एक ऐसी नीति के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है जो बढ़ते प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन के आयात के प्रमुख मुद्दों से निपटने के लिए लागत प्रभावी, स्वदेशी, आयात विकल्प आधारित और रोजगार पैदा करने वाली हो.