जयंती : अग्रकुल प्रवर्तक और समाजवाद के प्रणेता थे महाराजा श्री अग्रसेन जी

महाराजा अग्रसेनजी ने नागलोक के राजा कुमद के यहां आयोजित स्वयंवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया. इस विवाह से नाग एवं आर्यकुल का गठबंधन हुआ. जनश्रुति के अनुसार राज्य स्थापना के लिए महाराजा अग्रसेनजी ने महारानी माधवी के साथ सारे भारत का भ्रमण किया.

By Rajneesh Anand | October 15, 2023 6:34 AM
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-गोवर्धन प्रसाद गाड़ोदिया-

समाजवाद के जनक एवं अग्रकुल प्रवर्तक महाराजा श्री अग्रसेनजी का प्रार्दुभाव द्वापर के अंतिम एवं कलियुग के प्रथम चरण में हुआ था. महाराजा श्री अग्रसेनजी अग्रोदय/अग्रोदक नामक गणराज्य के शासक थे जिसकी राजधानी अग्रोहा थी. उन्होंने अपने शासन काल में समाजवाद को सार्थक कर दिखाया था, यही वजह है कि उन्हें समाजवाद का जनक माना जाता है.धार्मिक मान्यतानुसार इनका जन्म 4250 ईसा पूर्व सूर्यवंशी महाराजा बल्लभ सेन के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में आश्विन शुल्क प्रतिप्रदा को हुआ था. 15 वर्ष की आयु में अग्रसेन जी ने अपने पिता बल्लभ सेन जी के साथ पांडवों के पक्ष में महाभारत का युद्ध लड़ा था. महाराजा बल्लभ सेन के बाद महाराजा अग्रसेन जी ने राज्यभार संभाला, वो एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे जिन्होंने प्रजा की भलाई हेतु वणिक धर्म अपना लिया था.

नागलोक की राजकुमारी से विवाह

महाराजा अग्रसेनजी ने नागलोक के राजा कुमद के यहां आयोजित स्वयंवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया. इस विवाह से नाग एवं आर्यकुल का गठबंधन हुआ. जनश्रुति के अनुसार राज्य स्थापना के लिए महाराजा अग्रसेनजी ने महारानी माधवी के साथ सारे भारत का भ्रमण किया. इसी दौरान उन्होंने एक जगह शेर के शावक तथा भेड़िए के बच्चे को एक साथ खेलते देखा जिसे दैवीय संदेश मान कर उसी वीरभूमि पर ऋषि मुनियों एवं ज्योतिषियों की सलाह पर अपना राज्य स्थापित किया एवं नये राज्य का नाम अग्रोदय /अग्रेयाणा रखा. वह जगह आज के हरियाणा के हिसार के पास है और अग्रवालों के लिए तीर्थ के समान है. महाराजा अग्रसेनजी ने अपनी प्रजा की खुशहाली के लिए काशी नगरी जाकर भगवान काशी विश्वनाथ की घोर तपस्या की, जिससे आशुतोष भगवान शिव ने प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी.

समाजवाद के अग्रदूत

माता लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गई तपस्या से खुश होकर दर्शन देकर कहा कि क्षत्रिय धर्म के साथ वैश्य धर्म का पालन करते हुये अपने राज्य तथा प्रजा का पालन पोषण व रक्षण करें. उनका राज्य हमेशा धन धान्य से परिपूर्ण रहेगा. महाराजा श्री अग्रसेनजी ने न्यायपूर्वक लंबे समय तक शासन किया, उन्हें समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है. अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले नवान्तुक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे तत्कालीन प्रचलन का एक सिक्का एवं एक ईंट भेंट करेगा जिससे आसानी से नवान्तुक परिवार अपने आवास एवं व्यापार का प्रबंध कर सके. महाराजा अग्रसेनजी ने गणपद आधारित नई शासन व्यवस्था का शुभारंभ किया. पुनः वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर कृषि व्यापार , उद्योग, गोपालन के विकास के साथ -साथ नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना का बीड़ा उठाया.

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अग्रवंश के 18 गोत्रों की स्थापना 

माता महालक्ष्मी की कृपा से महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को 18 जनपदों में विभाजित कर एक विशाल राज्य का निर्माण किया था, जो इनके नाम पर अग्रय गणराज्य या अग्रोदय कहलाया. महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 गणाधिपतियों के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया. यज्ञों में बैठे इन 18 गणाधिपतियों के नाम पर ही अग्रवंश के गोत्रों की स्थापना हुई. उस समय यज्ञों में पशुबलि अनिवार्य रूप से दी जाती थी. प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ऋषि बने, सबसे बड़े राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से अभिमंत्रित किया. इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ऋषि ने करवाया द्वितीय गणाधिपति को गोयल गौत्र दिया, तीसरा यज्ञ गौतम ऋषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ऋषि ने बंसल गोत्र, पांचवें में कौशिक ऋषि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ऋषि नें सिंघल गोत्र, सातवें में मंगल ऋषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ऋषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ऋषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ऋषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ऋषि ने मंदल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ऋषि ने बिंदल गोत्र, चोदहवें में मैत्रेय ऋषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ऋषि ने कुच्छल गोत्र दिया. सोलवें में भारद्वाज ऋषि से भंदल गोत्र, सतरहवें में साकल ऋषि से तायल गोत्र. 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे. जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर वितृष्णा उत्पन्न हो गई. उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न मांस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणि मात्र की रक्षा करेगा. इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने अहिंसा धर्म को अपना लिया, इधर अंतिम और अठाहरवें यज्ञ में यज्ञाचार्यों द्वारा पशुबलि को अनिवार्य बताया गया, ना होने पर गोत्र अधूरा रह जाएगा, ऐसा कहा गया, परंतु महाराजा अग्रसेन के आदेश पर अठारवें यज्ञ में नगेंद्र ऋषि द्वारा नांगल गोत्र से अभिमंत्रित किया. यह गोत्र पशुबलि ना होने के कारण आधा माना जाता है, अग्रवाल समाज में आज भी साढ़े सत्रह गोत्र प्रचलित हैं.

श्री अग्रसेन जी ने 108 वर्षों तक राज किया

महाराजा श्री अग्रसेनजी ने 108 वर्षों तक राज किया. उन्होंने जीवन में जिन मानवीय मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता हैं. उन्होंने एक ओर हिंदू धर्म ग्रंथों में क्षत्रिय वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकारा और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए. उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था , आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता. एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए एवं वानप्रस्थ आश्रम अपना लिया.

अग्रवाल समाज के लोगों ने अपनी पहचान कायम रखी

विकसित अग्रेय राज्य पर कई पड़ोसी राज्य ईर्ष्या वश बार- बार आक्रमण करते थे, बार- बार के युद्धों एवं आगजनी के कारण कालान्तर में अग्रोहा निवासी बेहतर जीविका की तलाश में राजस्थान , उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं भारत के विभिन्न प्रदेशों में जा बसे. अग्रवाल जहां भी गये वहां के निवासियों के साथ दूध में शक्कर की भांति मिल गये, रच- बस गये पर अपनी सांस्कृतिक विरासत एवं 18 गोत्रों की पहचान बनाये रखा. समय काल के अनुसार गोत्र, पेशा, गांव, आदि कई कारणों से विभिन्न उपनाम रखते हुए सभी अग्रवाल अग्रसेनजी से जुड़ाव महसूस करते है.1877 में भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने उसके बाद डाॅ सत्यकेतु विद्यालंकार, डाॅ परमेश्वरीलाल गुप्ता, डाॅ वासुदेव शरण अग्रवाल डाॅ स्वराज्यमणी अग्रवाल आदि ने अग्रसेन जी पर कई पुस्तकें लिखी हैं. सितंबर 1976 को भारत सरकार द्वारा 25 पैसे का डाक टिकट महाराजा अग्रसेनजी के नाम जारी कर उनके प्रति सम्मान व्यक्त किया गया. 1975 में दक्षिण कोरिया से 350 करोड़ रूपये में एक विशेष तेल वाहक जहाज खरीदा गया, जिसका नाम “महाराजा अग्रसेन ” रखा गया जिसकी क्षमता 180000 टन है. राष्ट्रीय राजमार्ग 10 का नाम भी महाराजा अग्रसेन के नाम पर है.

अग्रोहा की खुदाई में मिले कई प्रमाण

पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा 1938-39 में अग्रोहा के खेड़े की खुदाई की गई जिसमें प्राप्त सिक्के जिन पर अग्रेय जनपदस्थ लिखा हुआ है जो ईपू दूसरी सदी के है, परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से यह सर्वेक्षण पूरा नहीं हो पाया. प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित आग्रेय ही अग्रवालों का उद्गम स्थल आज का आग्रेहा है, जो दिल्ली से लगभग 190 किलो मीटर दूर हिसार के पास राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 के पास स्थित है. अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन एवं अग्रोहा विकास ट्रस्ट अग्रोहा धाम के विकास के लिए भागीरथ प्रयास कर रहे हैं. महाराज अग्रसेनजी एवं महालक्ष्मी जी का मंदिर 1976 में शुरू हुआ एवं 1984 में पूर्ण हुआ.

अग्रसेन सभा कर रही है कई सामाजिक कार्य

महाराजा अग्रसेन चिकित्सा महाद्यिलय, अग्रसेन वाटिका, सरोवर, धर्मशाला एवं अनेक निर्माण किये जा रहे हैं. ग्रोह के विकास एवं पूरे देश में अग्रवंशियों को संगठित करने के उद्देश्य से 1975 में सीकर से सांसद कृष्ण मोदी , दिल्ली के रामेश्वरदास गुप्ता, जबलपुर के लाला बद्रीदास, इंदौर की डाॅ स्वरात्यमणी अग्रवाल, हरियाणा के बनारसीदास जी आदि महानुभावों ने मिलकर दिल्ली में अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन की स्थापना की. किशनजी मोदी पहले अध्यक्ष एवं रामेश्वरदास गुप्ता महामंत्री बने. 1975 में अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन की स्थापना के तुरंत बाद 1977 में रांची में अग्रवाल सभा की स्थापना हुई. स्व. सत्यनारायण जी बजाज अध्यक्ष एवं भागचन्द जी पोद्दार को मंत्री बनाया गया. अपने स्थापना काल से ही अग्रवाल सभा समाज को संगठित करने एवं मानव कल्याण के विभिन्न कार्य कर रही है. अपर बाजार में बहुउद्देशीय अग्रसेन भवन सर्व साधारण की आवश्यकता के लिए सुलभ है. लालपुर में मुख्य चौक पर महाराजा श्री अग्रसेन जी की मूर्ति लगाकर अग्रसेन चौक नामकरण करवाने में अग्रवाल सभा की महती भूमिका है. अग्रवाल सभा ने 1993-94 में पूर्वी भारत में सर्वप्रथम वैवाहिक परिचय सम्मेलन एवं सामूहिक विवाह का सफल आयोजन किया जो अनवरत जारी है.

15 अक्टूबर को अग्रसेन जयंती का उत्सव

15 अक्टूबर 2023 को अग्रवाल सभा महाराज अग्रसेनजी के आदर्शों का प्रचार- प्रसार एवं आत्मसात करने के उद्देश्य से श्री अग्रसेन जयंती मना रहा है जिसमें अग्रसेन चौक पर पुष्पांजलि ,अग्रसेन भवन में महाराजा अग्रसेनजी एवं महालक्ष्मी जी का पूजन हवन यज्ञ एवं सायंकाल आम सभा एवं प्रतिभाशाली बच्चों को पुरस्कार एवं अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे. महाराजा अग्रसेनजी अग्रवालों के आदि पुरूष है लेकिन उनके द्वारा प्रतिपादिक समतामूलक समाज का सिद्धांत सबके लिए अनुकरणीय है.

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